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हिंदी रिपोर्ताज साहित्य और कन्हैयालाल मिश्र का ‘क्षण बोले कण मुस्काए’ मनोज शर्मा सारांश रिपोर्ताज साहित्य की गणना हिंदी गद्य की नव्यतम विधाओं में की जाती है. द्वितीय विश्वयुद्ध के आसपास इस विधा का जन्म हुआ. रिपोर्ताज शब्द को अपने विदेशी...
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सामाजिक उत्तरदायित्व के बदलते स्वरूप आशुतोष पाण्डेय सारांश सामाजिक उत्तरदायित्व एक व्यापक शब्द है जिसका प्रयोग आदिकाल से किसी न किसी रूप में किया जाता रहा है। अतीत काल में मानव ख़ानाबदोश जीवन व्यतीत करके अपना जीवन-यापन करता था, लेकिन...
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भारतीय समाज के बाज़ारों में फुटपाथ दुकानदार : अभिन्न अंग या समस्या साजन भारती सारांश वर्तमान परिदृश्य में स्ट्रीट वेंडरों की दशा भी बदल गयी है । आज बाज़ार अपने बदलते स्वरूप में समाज के हर पहलू को प्रभावित कर...
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किन्नर का समाजः कुछ मुद्दंदे एक समाजशास्त्रीय अध्ययन सरिता गौतम प्रस्तावना: हमारे समाज में दो ही लिंग को पहचान मिली । स्त्री और पुरूष प्राचीन समय से ही स्त्री एवं पुरूष का काम आपसी सहयोग से संतान पैदा करना मानव जाति...
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थर्ड जेंडर –सामाजिक अवधारणा एवं पुनरावलोकन शोभा जैन हमारा पूरा समाज दो स्तम्भों पर खड़ा है पुरुष और स्त्री । लेकिन हमारे समाज में इन दो लिंगों के अलावा भी एक अन्य प्रजाति का अस्तित्व मौजूद है । समाज में इन्हें ‘थर्ड...
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