गजल
– दीप नारायण
क्या पता है कब तलक तुम्हारे पास मियाँ
ये जो तिरा जिस्म है कागज का लिबास मियाँ
सूरज को हथेली पे लिए फिरा करता है
अजीब शख्स है रखता है अजीब प्यास मियाँ
मेरा मकसद है के दुनियाँ बदले किसी सूरत में
अब देखो मेरा ही गर्दन है सूली के पास मियाँ
अभावों में रहा है वो आज कई दिन से भूखा
एकादशी है मुस्करा के कहेगा उपवास मियाँ
कोई नई साजिश नहीं, है रूप बस बदला हुआ
सोंच की जो बात हुई है उसका पर्दाफाश मियाँ
मत लूटो अब और मुझे शेष नहीं कुछ पास मेरे
जो भी थोड़ा शेष है चंद कतरा विश्वास मियाँ
हो कोई रहबर जो मिला दे मुझसे मुझे
कब से नहीं है मुझको खुद का तलाश मियाँ
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