काल मार्क्स की प्रसिद्ध उक्ति है- “दार्शनिकों ने केवल विभिन्न रूपों में दुनिया की व्याख्या ही की है, लेकिन असली काम तो उसे बदलने का है।”1 पर गांधी ऐसे दार्शनिक हैं जिन्होंने दुनिया की व्याख्या करने के साथ ही उसे बदलने की कोशिश भी की। गांधी का सारा जीवन सामाजिक अन्याय, आर्थिक विषमता, शोषण, गरीबी और उंच-नीच के भेद-भाव को खत्म करने की कोशिश में बीत गया। “उन्होंने भारत की हजारों वर्ष की जिंदगी की धड़कन को, उसकी लय को, उसकी सोच और संस्कृति को, उसके सम्पूर्ण सारतत्व को बड़ी गहराई से आत्मसात् किया और अपने जीवन में उसी को मूर्त किया। उन्हें देखकर कहा जा सकता था कि यह आदमी ‘भारत’ है।”2
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