अनुवाद रचना का पुनर्जीवन है। साहित्य और कला में जीवन के यथार्थ अनुभवों का लेखा-जोखा अभिव्यक्ति पाता है। यूं देखा जाय तो हमारा जीवन राजनीति एवं विचारधाराओं के तहत ही जिया जा रहा है। हमारे आस-पास जो गूंथा-बुना जा रहा है उस प्रभाव से हम अछूते नहीं रह पाते। कला में जो अभिव्यक्त होता है, अनुवाद के द्वारा उसी संवेदना को अन्यान्य तक संप्रेषित किया जा सकता है। भाषा विचारों की संवाहिका है तो अनुवाद विविध भाषाओं एवं विविध संस्कृतियों से साक्षात्कार करानेवाला साधन। अनुवाद अपने भगीरथ प्रयास से दो विभिन्न एवं अपरिचित संस्कृतियों,परिवेशों एवं भाषाओं की सौंदर्य चेतना को अभिन्न और परिचित बना देता है। पॉल एंजिल का यह कथन पूर्णतया सही है कि— “ इक्कीसवीं सदी में प्रत्येक देश में दो साहित्य उपलब्ध हो सकेंगे। पहला, उसके अपने लेखकों का रचा गया साहित्य और दूसरा विश्व भाषाओं से अनूदित साहित्य। “
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