बालकृष्ण भट्ट से लेकर आज तक के व्यंग्य रचनाकारों का लगभग1000 पृष्ठों
का संकलन , ‘उत्कृष्ट व्यंग्य रचनाएं’ दो
खंडों में, यश प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ है। इसकी
डिजिटल प्रति को लोकार्पण विश्व पुस्तक मेले में किया गया। एक वरिष्ठ रचनाकार की
प्रतिक्रिया थी – जो इसमें है वह व्यंग्य लेखन में है और जो इसमें नहीं, वह व्यंग्य लेखन में नहीं।’ मित्रों मैं यह दंभ नहीं
पाल रहा हूं। हां प्रयत्नपूर्वक तटस्थ संपादकीय दृष्टि के साथ सार्थक व्यंग्य के
रचनाकारों को सम्मिलित करने का प्रयत्न किया गया है।
का संकलन , ‘उत्कृष्ट व्यंग्य रचनाएं’ दो
खंडों में, यश प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ है। इसकी
डिजिटल प्रति को लोकार्पण विश्व पुस्तक मेले में किया गया। एक वरिष्ठ रचनाकार की
प्रतिक्रिया थी – जो इसमें है वह व्यंग्य लेखन में है और जो इसमें नहीं, वह व्यंग्य लेखन में नहीं।’ मित्रों मैं यह दंभ नहीं
पाल रहा हूं। हां प्रयत्नपूर्वक तटस्थ संपादकीय दृष्टि के साथ सार्थक व्यंग्य के
रचनाकारों को सम्मिलित करने का प्रयत्न किया गया है।
इक्कीसवीं सदी के
द्वार पर,
पराग प्रकाशन के स्व0 श्रीकृष्ण ने मुझसे अनुरोध किया था कि मैं
उनकी महत्वाकांक्षी योजना ‘बीसवीं शताब्दी का साहित्य’
श्रृंखला के अंतर्गत श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाओं का संकलन तैयार करूं।
संकलन को तैयार करने में मुझे दो वर्ष से अधिक का समय लगा। श्रीकृष्ण अपनी
ईमानदारी के कारण प्रकाशन को अधिक समय तक नहीं चला पाए और उन्होंने ‘पराग प्र्रकाशन’ बंद कर दिया।‘बीसवीं
शताब्दीः व्यंग्य रचनाएं’ अनुपलब्ध हो गई। अनेक प्रशंसक पाठक
इसे ढूंढते रहे, पर …।
द्वार पर,
पराग प्रकाशन के स्व0 श्रीकृष्ण ने मुझसे अनुरोध किया था कि मैं
उनकी महत्वाकांक्षी योजना ‘बीसवीं शताब्दी का साहित्य’
श्रृंखला के अंतर्गत श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाओं का संकलन तैयार करूं।
संकलन को तैयार करने में मुझे दो वर्ष से अधिक का समय लगा। श्रीकृष्ण अपनी
ईमानदारी के कारण प्रकाशन को अधिक समय तक नहीं चला पाए और उन्होंने ‘पराग प्र्रकाशन’ बंद कर दिया।‘बीसवीं
शताब्दीः व्यंग्य रचनाएं’ अनुपलब्ध हो गई। अनेक प्रशंसक पाठक
इसे ढूंढते रहे, पर …।
‘यश प्रकाशन’
के शर्मा जी के हाथ यह संकलन लगा तो वे इसी प्रस्तुति एवं सामग्री
के प्रशंसक हो गए। उनका कहना था कि पहली बार किसी ने हिंदी व्यंग्य के रचनात्मक
इतिहास को , पीढ़ियों में विभाजित कर वैज्ञानिक रूप से
प्रस्तुत किया है। उन्होंने अक्टूबर 2013 में मुझसे आग्रह किया कि मैं इसे
उत्कृष्ट व्यंग्य रचनाओं के संकलन के रूप में संशोधित करूं तथा इक्कीसवीं सदी में
लिखी गई व्यंग्य रचनाओं को सम्मिलित करूं। पिछले डेढ़ दशक में न केवल व्यंग्य की
स्वीकर्यता बढ़ी है अपितु उसके रचनकारों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। व्यंग्य की
एक नई पीढ़ी ने जन्म लिया है। इक्कीसवीं के द्वार पर खड़े अनेक युवा व्यंग्यकार आज
प्रौढ़ हो चुके हैं।शर्मा जी इस संशोधित एवं परिवर्द्धित संकलन को फरवरी 2014 के
विश्व पुस्तक मेले में लाना चाह रहे थे। मुझे लगा कि संशोधन और परिवर्द्धन का
कार्य सरल होगा और मैं इसे बाएं हाथ से पूर्ण कर दूंगा। पर कार्य इतना सरल नहीं था।
पिछले डेढ़ दशक में प्रकाशित व्यंग्य रचनाओं से न केवल साक्षात्कार करना था वरना
उसकी जमीन को भी समझना था। जनवरी 2014 में मैंने शर्मा जी से क्षमा मांगते हुए कहा
कि ‘उत्कृष्ट व्यंग्य रचनाओं के संकलन के लिए मुझे समय भी
उत्कृष्ट चाहिए। शर्मा जी भी साहित्य की उत्कृष्ट प्रस्तुति में विश्वास करते हैं,
अतः उन्होंने मुझे समय दिया और समय देने का परिणाम यह हुआ कि
संशोद्धित संस्करण अपने परिवर्द्धन के चलते इतना विशालकाय हुआ कि इसकी काया को
एकाकार करना कठिन हो गया। अतः इसे दो खंड में प्रस्तुत करने का विचार किया गया।
पहले खंड में हिंदी व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी तक के व्यंग्यकारों की रचनाओं को संकलित
किया गया है। तथा दूसरे खंड में, चैथीं पांचवी पीढ़ी के साथ
विभिन्न विधाओं में सृजनरत , हिंदी व्यंग्य धारा के सहयोगी
रचनाकारों की व्यंग्य रचनाओं को सम्मिलित किया गया है।
के शर्मा जी के हाथ यह संकलन लगा तो वे इसी प्रस्तुति एवं सामग्री
के प्रशंसक हो गए। उनका कहना था कि पहली बार किसी ने हिंदी व्यंग्य के रचनात्मक
इतिहास को , पीढ़ियों में विभाजित कर वैज्ञानिक रूप से
प्रस्तुत किया है। उन्होंने अक्टूबर 2013 में मुझसे आग्रह किया कि मैं इसे
उत्कृष्ट व्यंग्य रचनाओं के संकलन के रूप में संशोधित करूं तथा इक्कीसवीं सदी में
लिखी गई व्यंग्य रचनाओं को सम्मिलित करूं। पिछले डेढ़ दशक में न केवल व्यंग्य की
स्वीकर्यता बढ़ी है अपितु उसके रचनकारों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। व्यंग्य की
एक नई पीढ़ी ने जन्म लिया है। इक्कीसवीं के द्वार पर खड़े अनेक युवा व्यंग्यकार आज
प्रौढ़ हो चुके हैं।शर्मा जी इस संशोधित एवं परिवर्द्धित संकलन को फरवरी 2014 के
विश्व पुस्तक मेले में लाना चाह रहे थे। मुझे लगा कि संशोधन और परिवर्द्धन का
कार्य सरल होगा और मैं इसे बाएं हाथ से पूर्ण कर दूंगा। पर कार्य इतना सरल नहीं था।
पिछले डेढ़ दशक में प्रकाशित व्यंग्य रचनाओं से न केवल साक्षात्कार करना था वरना
उसकी जमीन को भी समझना था। जनवरी 2014 में मैंने शर्मा जी से क्षमा मांगते हुए कहा
कि ‘उत्कृष्ट व्यंग्य रचनाओं के संकलन के लिए मुझे समय भी
उत्कृष्ट चाहिए। शर्मा जी भी साहित्य की उत्कृष्ट प्रस्तुति में विश्वास करते हैं,
अतः उन्होंने मुझे समय दिया और समय देने का परिणाम यह हुआ कि
संशोद्धित संस्करण अपने परिवर्द्धन के चलते इतना विशालकाय हुआ कि इसकी काया को
एकाकार करना कठिन हो गया। अतः इसे दो खंड में प्रस्तुत करने का विचार किया गया।
पहले खंड में हिंदी व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी तक के व्यंग्यकारों की रचनाओं को संकलित
किया गया है। तथा दूसरे खंड में, चैथीं पांचवी पीढ़ी के साथ
विभिन्न विधाओं में सृजनरत , हिंदी व्यंग्य धारा के सहयोगी
रचनाकारों की व्यंग्य रचनाओं को सम्मिलित किया गया है।
– प्रेम जनमेजय