हे अर्जुन उठा गांडीव

पोंछ दे मानवता के अश्रु से भींगे नयन

याद कर वो सभा

हारे थे स्वाभिमान तुम्हारे

जब सकुनी के पासों से

खिंचे थे वस्त्र लज्जा के,

जब दुःशासन के हाथों ने

ये वही कर्ण है,जिसके शब्द नही रुके थे

ये वही भीष्म हैं,जिनके शब्द नही निकले थे

ये वही है दुर्योधन

दिया था निमंत्रण द्रोपदी को

जिनके जंघों ने

ये वही द्रोण हैं,कृप हैं

जो बांध रखा था अपने गुरुत्व को

मुठ्ठी भर अनाजों से

ये सब वही हैं,

जो मौन थे,हर्षित थे

द्रोपदी के चीर हरण पे

ये सब भागी हैं दुर्योधन के षड्यंत्रों के

मत सोच कितने कटेंगे सर 

कौन-कौन मारा जाएगा

ये सब हंता हैं मानवता के

फूंक दे संख बजा रणभेनी

तिलकित होगा तेरा ललाट

दुनिया तेरी जय कहेगी

सुन सकता है तो सुन

हो रही विजयनाद

युद्ध के उस पार…।