हाइकु- डॉ अर्चना सिंह

बेटियाँ-

प्रसव पीड़ा

नहीं, ये तड़प तो

बेटी होने की |

बेटी होने की,

सुन खबर

मुरझाया है, मुख |

पाँव पसार

अब सोयेगा पिता

बेटी ब्याह दी |

लाडली बेटी

बढ़ी दूरी इतनी

बनी बहू जो |

पाँव पूजते

बेटी हुयी पराई

वाह री रीत

विडम्बना-

चाह मुझसे

पूर्ण समर्पण की ?

स्वयं स्वार्थी |

तारे गिनते

देखती रही राह,

तुम न आये |

बाट जोहती

सूरज उगने की

बदली छाई |

कराहती माँ

दे रही आवाज

बेटा है धुत |

सूखी धरती

हो उठेगी व्याकुल

पानी न डालो |

डॉ अर्चना सिंह

गोमती नगर एक्सटेंशन

लखनऊ,

मेल- drarchanasumant@gmail.com