सावन की प्रथम फुहार
सुनी आज पपिहे की बोली ,
कहां चली मंडुकों की टोली?
क्यों हुआ चातक भाव विह्वल,
क्यों मुसकाई वसुंधरा मंद- मंद?
क्यों शिखावल फैलाए पंख,
क्यों निहार रहे नभ सारस, हंस?
क्यों तरु करे सप्त स्वर उत्पन्न,
क्यों भर आए विरहिणी – नयन?
क्यों आज नहीं भानु विकराल,
क्या बीत गया निदाघकाल?
क्यों हंसी कुसुम खिलखिला,
क्यों चहका है भ्रमर आज?
श्यामल घटा से छाया नभ,
आए श्वेत श्याम मेघ संग।
तो इसलिए छाई प्रसन्नता,
प्रथम मेघ फुहार उत्कंठा।।
घुमड़- घुमड़ बादल गरजे,
चमक- चमक बिजली चमके।
सनन -सनन पवन लरजे,
छमक- छमक सावन बरसे।।
करती मेदिनी को रससिक्त,
प्रथम फुहार हुई अवतरित।
गंधवती हो उठी अवनी,
जलपान कर कदली मुकुलित।।
झर- झर गिर रहे हरसिंगार,
छम- छम करती जल फुहार।
छा गई धरा पर हरियाली,
हुई है हवा आज मतवाली।।
वारि- धार धरा की ओर,
गरज -गरज मेघ करते शोर।
नव पल्लव संग खिली प्रशाखा,
स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक