जिसके मन में जो आएं

वो वे न बके

इस तरह बातों की भीड़ में

सच्ची बात खो जाती है

सस्ती मस्ती में बना देते हो

तुम जो बातों के भूतहा खंडहर

तुम्हें पता है

इसमें से गुजरते हुए

सच की तो मानों जान ही निकल जाती है।