विश्वास
(कहानी)
‘प्लीज मम्मी ..’..
‘कोई प्लीज- ब्लीज नहीं ! आज तो तुम्हें सबक सिखा कर ही दम लूंगी |’
सारिका ने अपने इकलौते बेटे आयुष को पीटने के लिए उसके पीछे-पीछे छड़ी लेकर ड्राइंग रूम के सोफे के इर्द गिर्द चक्कर लगाते हुए पसीने से लथपथ होकर कहा |
आयुष ‘ प्लीज मम्मी मुझे मत मारो ‘ कहता सोफे के चक्कर लगा रहा था और सारिका हाथ में एक पतली छड़ी लेकर उसे पीटने का अनमना प्रयास करती हुई उसका पीछा कर रही थी |
वास्तव में कोई मां अपने कलेजे के टुकड़े को पीटना तो दूर डांटना भी नहीं चाहती | पर कभी-कभी उनकी शैतानियों पर खींझना और गुस्सा आने पर स्वाभाविक तौर पर पिटाई भी करती ही है | …और फिर दुलार-पुचकार कर उसे चुप करना भी तो उसी को है |
सारिका भी अपने आयुष को अपनी आंखों का तारा समझती है | उसे सिविल सेवा में भेजना चाहती है ; जो कि उसके लिए उसके माता-पिता का सपना था और वह उनके सपने को साकार नहीं कर सकी थी| आज वही आकांक्षा, वही चाह , वही स्वप्न सारिका की आंखों में आयुष को लेकर है |
आयुष है भी एक मेधावी छात्र | अभी आठवीं कक्षा में पढ़ता है और पिछले 4 वर्षों से 90% से ज्यादा अंक लाकर अपनी कक्षा का सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी बना हुआ है |
सारिका एक सरकारी उच्च विद्यालय में विज्ञान शिक्षिका के रूप में कार्यरत है | उसके पति का एक छोटा सा अपना कारोबार है जिसकी देखरेख में वह अपना ज्यादा समय घर के बाहर ही बिताते हैं | इस प्रकार स्कूल और घर के साथ-साथ आयुष की भी पूरी जिम्मेदारी सारिका के हाथों में ही है |
आयुष पढ़ाई में तो अव्वल है ही साथ ही खेलकूद में भी उसका कोई जोड़ नहीं | सौ मीटर दौड़ में फर्स्ट | साइकिलिंग में स्कूल चैंपियन और जब उसके हाथों में बैट होता है तो उसके दोस्त उसे सचिन और द्रविड़ का मिक्स फार्मेट कहते हैं | लेकिन उसकी इतनी सारी खूबियों से उसके कुछ दोस्त जलते भी हैं और उसके उन्हीं दोस्तों में से किसी ने आयुष की शिकायत सारिका से की थी कि वह अब पढ़ने से ज्यादा ध्यान खेल पर दे रहा है | हालाँकि इस शिकायत से सारिका पर कोई असर नहीं पड़ा ; पर जब उस दिन आयुष के किसी दूसरे दोस्त ने उसे यह खबर सुनाई कि आयुष आज दिनभर अपनी दोस्त नरगिस के साथ कहीं घूम रहा था तो उसके क्रोध की सीमा नहीं रही और ….. और फिर आयुष के घर लौटते ही उसने उससे सीधा सवाल किया -‘ तुम आज नरगिस के साथ थे ?’
आयुष – ‘ हां मॉम ! पर मैं तो….’
‘ बस.. ‘ सारिका गुस्से से चीख पड़ी | और फिर ना जाने कहां से किस काम के लिए लाई गई वह छड़ी अचानक सारिका के नजरों के सामने आ गई और फिर हाथों में और फिर चीखते- चिल्लाते हुए आयुष के शरीर पर | पहले तो आयुष कुछ समझ नहीं पाया | फिर अचानक अपनी मां को इतनी गुस्से में देखकर ‘प्लीज मम्मी ‘ .. कहता हुआ उससे बचने का प्रयास करता हुआ सोफे के चारों तरफ भागने लगा |
सारिका ने हाँफते हुए कुछ रुआंसी आवाज में कहा – ‘ मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी आयुष , ओह भगवान……!’ मां को भावुक होता देख आयुष भी भागते-भागते रुक गया और उसके पास आकर बोला- ‘ मां आप ऐसा क्यों सोचती हो …प्लीज फेथ मी मॉम ! मेरा विश्वास करो … मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जो गलत हो , बस छुट्टी के बाद नरगिस के साथ उसके पापा को देखने हॉस्पिटल चला गया था ! ‘
लेकिन सारिका ने आयुष के द्वारा दिए गए उसकी सफाई को सुना भी नहीं क्योंकि आयुष के यह शब्द – ‘ फेथ मी मॉम, मेरा विश्वास करो ‘ …. उसके जेहन में नगाड़े की तरह बज रहे थे …. ‘ फेथ मी मॉम..फेथ मी मॉम …. फेथ …फेथ …. विश्वास.. !
और इसी शब्द के साथ वह अपने अतीत में खोती चली गई……..
लगभग 20 साल पहले जब वह B.Sc. में पढ़ती थी | अपने मां बाप की इकलौती सर्वगुण दुलारी संतान | उसकी मां चाहती थी कि वह ग्रेजुएशन के बाद आई.ए .एस. की तैयारी करे क्योंकि उसके पापा आई.ए.एस. के पी. ए. थे | और वे उस पद के पावर ,ग्लैमर तथा सोशल वैल्यू से काफी प्रभावित थे | सारिका भी अपने माता-पिता की इच्छा को साकार करना चाहती थी | इसलिए उसने भी अपनी स्टडी को उस अनुरूप ढालना शुरू कर दिया था | उसका ग्रेजुएशन का लास्ट ईयर चल रहा था कि पता नहीं कब और कैसे , क्या हुआ कि उसके सारे सपने धुंधले पड़ने लगे | उसकी किताबों पर धूल जमने लगीं |
उसकी सबसे प्रिय सहेली अनामिका ने उसे समझाने का प्रयास भी किया कि ‘ सारिका यू क्लास बंक करना ठीक नहीं |’ लेकिन सारिका ने उसकी बातों पर ध्यान भी नहीं दिया | पहले तो सप्ताह में एक -दो क्लास छोड़ना ; पर अब तो हफ्ते में एक दिन भी नजर आए तो यही बड़ी बात थी | हालाँकि अनामिका के बार-बार समझाने और कहने पर सारिका भी थोड़ी देर के लिए सोचने लगती थी कि वह जो कर रही है वह गलत है | पर यह उमर, कुछ नौजवान दोस्त , कुछ रोमानी सपने उसके सोच पर हावी हो जाते और वह सब कुछ भूल कर फिर अनामिका की बातों को अनदेखा कर देती |
लास्ट ईयर के फॉर्म फिलअप के अंतिम दिन सारिका कॉलेज में नजर आई | संयोग से अनामिका भी उसी दिन फॉर्म भरने वाली थी | दोनों की मुलाकात हुई पर अनामिका सारिका में आए बदलाव से काफी दुखी हुई | उसने मन ही मन कुछ निर्णय लिया |
शाम का वक्त ! अनामिका सारिका की मां के सामने सोफे पर बैठी थी | उसके चेहरे पर तनाव और ललाट पर पसीने की कुछ बूंदे चमक रही थीं |अनामिका ने कहा- ‘आंटी मैं काफी पहले आपसे आकर मिलने वाली थी पर…’
तभी अपने घर में सारिका ने दबे पांव कदम रखा | हालाँकि उसे यह पता नहीं था कि आज उसकी मां के सामने उसकी पोल खुल चुकी है इसलिए वह दबे पांव आ रही थी; बल्कि कुछ गलत करने का एहसास खुद हमें चोर बना देता है |
सारिका ने जैसे ही ड्राइंग रूम में कदम रखना चाहा तभी उसकी कानों में अनामिका की आवाज आई और उसके पैर ठिठक गए|
‘ आंटी सारिका कहां गई है ?’
‘ वह तो कॉलेज के बाद ट्यूशन करने जाती है |’
………….
‘ बस ! अनामिका, बहुत हो चुका | अब मैं अपनी सारिका के खिलाफ एक लफ्ज़ भी नहीं सुनना चाहती हूं |’
अपनी माँ को क्रोधित जानकर सारिका के तो होश फाख्ता हो गए |
उसकी माँ अनामिका से कह रही थी ….’ मुझे मेरी सारिका , मेरी बेटी पर पूरा भरोसा है | विश्वास है उस पर कि वह मेरे विश्वास को ठेस नहीं पहुंचा सकती | ‘
सारिका के कानों में उसकी माँ के यह शब्द गूंजने लगे | वह भाग कर अपने स्टडी रूम में गई और फूट-फूट कर रोने लगी | कुछ देर बाद जब उसका मन हल्का हुआ तो वह अपनी माँ के कहे गए शब्दों को सोचने लगी…… ‘ मुझे अपनी सारिका , अपनी बेटी पर भरोसा है | विश्वास है उस पर ‘ … और फिर सारिका ने अपनी माँ के विश्वास पर खरा उतरने को ठान लिया | हालाँकि उसने अपना कीमती एक साल बर्बाद कर दिया था फिर भी उसने हार नहीं मानी | ग्रेजुएशन के रिजल्ट आए | सारिका को पूरे 60% अंक मिले थे ; ना एक कम ना एक ज्यादा |
तभी उसके जीवन में एक बड़ा हादसा हुआ कि एक कार- एक्सीडेंट में उसके पिता की मृत्यु हो गई |उसकी माँ एक दम टूट सी गई | सारिका को भी उस दुख से उबरने में काफी वक्त लगा | उन्हीं दिनों अनामिका बी.एड. में नामांकन करवाने जा रही थी सो सारिका भी साथ हो ली
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B.Ed के रिजल्ट के समय जब सारिका ने अनामिका को बतलाया कि अनामिका को उसकी माँ के द्वारा कहे गए शब्दों से ही हौसला पाकर आज वह फिर से संभल सकी है ; और उसी दिन उसकी आंखें खुल गई थी कि उसकी माँ उस पर कितना भरोसा करती है और वह क्या करने जा रही है |
आयुष ने अपनी माँ को सोचते देख कर उसे झिंझोड़कर कहा – ‘आप की कसम मॉम, मेरा फेथ करो ! मैंने कुछ गलत नहीं किया है| ‘
सारिका की तंद्रा टूटी | आयुष कहता जा रहा था – ‘आप ही बताओ मॉम , अपने दोस्त के दुख में हाथ बटाना क्या गलत है ? ‘
सारिका की आंखों से अचानक अश्रुधार फूटकर बह निकले | वह बोल पड़ी – ‘नहीं बेटे ! कुछ गलत नहीं है | तुम गलत कर ही नहीं सकते ! मुझे.. मुझे तुम पर विश्वास है .. पूरा भरोसा है ! ‘
सारिका रोती जा रही थी और आयुष को अपनी छाती से लगाकर बड़बड़ाती जा रही थी…” आई फेथ यू ..मुझे विश्वास है विश्वास है ..विश्वास ! ”
डॉ. भूपेन्द्र अलिप