- **वसुंधरा वंदन**
तिरंगें में रंगा है जन,
तन,मन और जीवन।
कोटि-कोटि नमन तुम्हें,
हे! वसुंधरा जग वंदन।।
नील गगन कृति गाए,
मधुर मलय ध्वजा लहराए।
यश की गाथा गान सुनाए,
गीत-राग में वन्दे मातरम।
कोटि-कोटि नमन तुम्हें,
हे! वसुंधरा जग वंदन।।
हिमालय बन रक्षक प्रहरी,
सागर निशदिन चरण पखारे।
अविरल,कल-कल गंगा धारा,
तुम्हारे मंत्र का स्वर पुकारे,
माँ! तुम्हारे पद धूलि से,
मैं करूं तिलक चंदन।
कोटि-कोटि नमन तुम्हें,
हे!वसुंधरा जग वंदन।।
सिंह की दहाड़ कानों में पड़ते ही,
रोम-रोम में जोश जगे।
हुंकार भरी बदरी ,
जब जब प्रलयंकर राग रचे,
मानो तेरे लोचन में लग रही हो अंजन।
कोटि-कोटि नमन तुम्हें,
हे! वसुंधरा जग वंदन।।
कोटि-कोटि नमन तुम्हें,
हे!वसुंधरा जग वंदन।
विश्वरुप साह ‘परीक्षित’
भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त से एक नवोदित कवि