वर्चस्व
बरखा मुझे तुझसा वर्चस्व चाहिए
बूंद-बूंद कर बना सर्वस्व चाहिए।
सींच सकूं गगन-धरा लक्ष्य चाहिए,
बरखा मुझे तुझसा सामर्थ चाहिए।
शुष्क हुए मन, हृदय गिर रहे हैं पात,
रक्त रक्त है धरा,बढ़ गई है त्रास।
बरखा मुझे सावन का वक्त चाहिए,
सिक्त होवें भाव,त्रृष्णा पस्त चाहिए,
बरखा मुझे तुझसा अमृत्व चाहिए,
स्नेह धार से भरा हर वक्ष चाहिए।
बरखा मुझे तुझसा सर्वस्व चाहिए,
बूंद-बूंद कर बना वर्चस्व चाहिए।
शशि शर्मा