लिखना और पढ़ना दोनों एक ही सिक्का के दो भाग है
एक ही पन्ना के दो पेज है, अगर एक भाग कमजोर हुआ तो निःसंदेह दूसरा भाग भी अपने आप कमजोर हो जाएगा,इसलिए जो लोग लिखते हैं उनको पढ़ना भी चाहिए
यह बात मैं केवल लेखक वर्ग के लिए नहीं लिख रहा हूँ, बल्कि हर वर्ग जो अध्ययन शील हैं उनपर भी यह लागू होती हैं और वैसे भी लिखना और पढ़ना अध्ययन का हिस्सा है
लेकिन अक्सर देखा गया है की ज्यादातर लोग मोटी-मोटी किताबें खरीद लेते हैं, लेकिन उसे पढ़ने के लिए अवकाश नहीं निकाल पाते हैं, हाँ इतना तो जरूर करते हैं की अपने स्तर से पढ़ने की कोशिश करते हैं
ऐसी बात नहीं है की हमारा समाज साहित्य में रुचि नहीं रखता हैं अगर ऐसा होता तो स्थापित या नवांकुर लेखकों की
रचनाओं को कौन पढ़ता?अथवा इनकी किताबें कैसे बिकती?इससे साफ जाहिर होता है की साहित्य को पढ़ने वाले आज भी हैं, और लेखकों के लिए पाठक वर्ग ही समीक्षक और आलोचक होता हैं, क्योंकि पाठक ही तो लेखकों की कमियों को बताते हैं लेखक हर कोई नहीं होता है,बल्कि पाठक तो हर कोई होता हैं और एक पाठक लेखक नहीं हो सकता है,लेकिन एक लेखक पाठक जरूर हो सकता है, इसलिए हर लेखक अगर साहित्य सृजन करता है,तो वह दूसरी रचनाओं को पढ़ता जरूर है
लिखने के लिए जरूरी है की हमें भाषा पर पकड़ होनी चाहिए, रचनात्मक शक्ति होनी चाहिए, व्याकरण अच्छी होनी चाहिए और जिस विषय-वस्तु पर हम लिख रहे हैं उसकी ज्ञान होनी चाहिए, लेकिन हम ज्यादातर लिखने में गलतियां करते हैं और यह गलतियां ज्यादातर हिंदी साहित्य में होती हैं अगर मैं इसके कारण की बात करूँ तो यही लिखूंगा की हम बचपन से ही हिन्दी साहित्य पर ध्यान नहीं देते हैं अगर हिंदी साहित्य पर बाल्यकाल से ही ध्यान दिया जाता तो इस कमी को दूर किया जा सकता है
:कुमार किशन कीर्ति
हिंदी लेखक, बिहार