वह आता है, चिल्लाता ,
चना मूंगफली ।
कभी -कभी वह कह उठता,
भाई बोहोनी नहीं हुई ,
कुछ ले लो बोहोनी हो जाये!
वह सत्तर साल का बूढ़ा,
जो पैरों से अपाहिज है।
फिर भी इस भद्द दोपहरी में,
वह आता चिल्लाता!
चना! मूंगफली!

मैंने देखा! एक भारी अन्तर ,
उसमें और भीख मांगने वाले नौजवान में।
तन और मन पुष्ट।
जब वह बाबा मुझसे कहता है,
” बाबा मांगेगे नहीं तो खायेंगे क्या?”
मैं उस भीख मांगने वाले व्यक्ति पर
उस बूढ़े मूंगफली बेचने वाले का उदाहरण देकर चिल्लाया,
तब मैंने गहरा अन्तर देखा दोनों में ।
चना – मूंगफली बेचने वाला बूढ़ा भीख नहीं मांगता।
बचाये रखे हुए है अपना आत्मसम्मान ।
वह उसकी तरह ईश्वर के नाम पर किसी को नहीं ठगता।
वह चना – मूंगफली बेचता जर्जर अवस्था में,
साईकिल पर आता , चिल्लाता!
चना ! मूंगफली!

नाम – अमित कुमार ‘हिन्द ‘
छात्र – एम. ए., हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्याल।