राजस्थान की प्रथम नगर परिषद का ऐतिहासिक महत्व एवं महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता का एक विश्लेश्णात्मक अध्ययन: राजस्थान की प्रथम नगर परिषद्, ब्यावर के संदर्भ में

कविता अटवाल

शोधार्थी, राजनीति विज्ञान,

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर (राजस्थान)

धर्मदास अटवाल

विभागाध्यक्ष एवं पीजीटी भाषा (हिन्दी),

आर्मी पब्लिक विद्यालय, मथुरा छावनी, उ.प्र.

सारांश

प्रस्तुत शोध पत्र राजस्थान प्रदेश की प्राचीनतम और प्रथम नगर परिषद्, ब्यावर को केन्द्रित करके प्रणित किया गया है, इसका उद्देश्य ब्रिटीशकाल में निर्मित ब्यावर शहर की नगर परिषद में महिलाओं की राजनीतिक स्थिति को स्पष्ट करना और स्त्रियों की सहभागिता को प्रकाश में लाना है। आज तक स्त्रियों के जीवन में होने वाले राजनीतिक अधिकारों और उनकी विकास गति को भी उपलब्ध कराया जाना शोध का महत्वपूर्ण कारण रहा है। आज़ादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के पश्चात् उन बदलावों को सूचीबद्ध किया जाना, जिससे महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार हो सके, शोध का प्रधान उद्देश्य है।

बीज शब्द: महिला, सशक्तिकरण, राजनीतिक, मेरवाडा, ब्रिटीशकाल, सहभागिता

शोध प्रविधि: प्रस्तुत शोध पत्र में प्राथमिक एवं द्वितीय आंकड़ों का प्रयोग किया है इसमें साक्षात्कार, समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं, पुस्तकों और इंटरनेट आदि का प्रयोग किया गया है।

शोध आलेख

प्रदेश का ब्यावर कस्बा सदैव ही अपनी प्राकृतिक सम्पदा और शौर्य बल के साथ ही साथ अपनी भौगोलिक स्थिति के लिए जाना जाता रहा है। यहा से पूरे प्रदेश के लिए मार्ग उपलब्ध होने के कारण राजस्थान पर आधिपत्य की दृष्टि से इस क्षेत्र पर अधिकार सबसे पहले आवश्यक है। इसी नजरिए से अजमेर क्षेत्र जिसके अंतर्गत ब्यावर क्षेत्र शामिल किया जाता है, पर अंग्रेज अपनी पहुंच और पकड़ बनाएं रखना चाहता थे। ब्रिटीशकाल में यही क्षेत्र केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में था, जिस पर स्वतंत्र रूप से अंग्रेज अपना स्वतंत्र प्रशासन भी चलाते थे। इस क्षेत्र को वर्तमान राजस्थान राज्य के एकीकरण में अंतिम रूप से 01 नवम्बर 1956 को मिलाकर ही आधुनिक राजस्थान मूर्त रूप लेता है।

आज़ादी के पूर्व ब्रिटीश प्रशासकों ने अजमेर के इस क्षेत्र कोए अजमेर-मेरवाड़ा के अलग नाम से केन्द्रशासित प्रदेश बनाकर यहा अपनी शक्ति को केन्द्रीकृत किया। अजमेर तो मुख्य रूप से चला आ रहा वर्तमान जिला अजमेर शहर का नाम रहा है और मेरवाड़ा इसके आस-पास का क्षेत्र है। यह क्षेत्र मेरवाड़ा कहा जाने का भी विशेष कारण इस क्षेत्र में निवास करने वाली मेर नामक जाति है। यह पूरी दुनिया में हिन्दू और मुस्लिम एकता के लिए एक अनूठी कौम मानी जाती है, जो कि हिंदू-मुस्लिम रीति-रिवाजों को सयुक्त रूप से मानती है, तथा दोनों ही धर्मो के त्योहारों और उत्सवों को मनाती है। यह जाति अपने अदम्य शौर्य और बलिदान के लिए भी जानी जाती है। इस क्षेत्र में निवास करने वाली इस कौम में लगभग प्रत्येक परिवार अथवा घर का एक ना एक व्यक्ति सेना में अवश्य होगा। इस जाति के लोग देश सेवा के जज्बे से लबरेज होते है, तथा यहा के अधिकांश गांवों में सेना के शहीदों की छयाव चिह्न मिल जाते है। यहा का चप्पा-चप्पा भोमियां है और हर घर की फुलवारी वीरांगनाओं के पुष्पों से महकती है। इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और अवस्थिति के कारण अंग्रेजों ने देश में पैर जमा लेने के बाद अपने भविष्य की योजनाओं को मूर्त रूप इसी क्षेत्र से दिया। इस दृष्टि से यह क्षेत्र अंग्रेजों की प्रयोगशाला रहा है, जिस पर देश के प्रशासन और नियंत्रण के प्रथम प्रयोग यही पर किए गए। उत्तर भारत का प्रथम गिरजाघर भी ब्यावर का शूलबे्रड चर्च है, जो की यही पर अवस्थित है। यही पर अंग्रेजों द्वारा प्रथम डिस्पेंसरी (चिकित्सालय) मेवाड़ी गेट के पास स्थापित की गई थी, तथा यही पर वर्तमान में पांच बत्ती बाज़ार के कपडा मार्केट में पुलिस थाने की स्थापना भी अंग्रेज प्रशासन ने की थी।

इतिहास के आइने से :

ब्यावर का ऐतिहासिक वर्चस्व कभी कम नहीं रहा है। 01 फरवरी 1836 को दिन के प्रातः 10.10 पर ब्यावर की स्थापना की नींव का प्रथम पत्थर आधुनिक अजमेरी गेट पर कर्नल चाल्र्स डिक्शन के द्वारा रखा गया था। साल 1839 को 144 मेरवाड़ा बटालियन की उपस्थिति में ब्रिटीश सरकार ने मेरवाड़ा स्टेट की घोषणा के साथ ही ब्यावर के महत्व को स्पष्ट कर दिया था। 01 मई 1867 को अंगे्रज सरकार ने मेरवाड़ा स्टेट के ब्यावर में शासन की सरलता के लिए कमिश्नरी राज (प्रजातांत्रिक गणराज्य) की स्थापना की जो भारत की स्वतंत्रता अर्थात 14 अगस्त 1947 तक अक्षुण्ण कायम रहा। देश की आज़ादी के आंदोलन में भी इस शहर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, राजपूताने की प्राचीनतम सैनिक छावनियों में से एक ब्यावर छावनी रही है और शहर के संस्थापक कर्नल डिक्सन इसी सैनिक छावनी के सदर थे, और उन्होंने इस शहर के सामरिक महत्व को जानकर ही एक आधुनिक शहर की स्थापना की थी। आज़ादी के पश्चात् अजमेर-मेरवाड़ा के इस केन्द्रशासित क्षेत्र को राजस्थान के एकीकरण के बाद अंतिम रूप से 01 नवम्बर 1956 को आज के राजस्थान का हिस्सा घोषित किया और अजमेर को जिला तथा ब्यावर को उपखण्ड का दर्जा दिया, जो कि आज भी जस का तस है।

ब्यावर नगर परिषद् और उसका वैभवशाली इतिहास :

1818 की सहायक संधियों के पश्चात् देश में अंग्रेजी राज्य की प्रगति में तीव्रोत्तर वृद्धि हुई और ब्रिटीश शासन महारानी के सीधे हस्तक्षेप में 1857 की क्रांति के बाद आ चुका था। ऐसे में अंग्रेजी राज इकाईयों में बांटकर एक नई व्यवस्था में विकसित होने लगा। शासन को सुविधा के नजरिये से बांटते हुए इनहे केन्द्रशासित प्रदेशों में बांटा जाने लगा। इस व्यवस्था में अजमेर-मेरवाडा एक केन्द्र शासित प्रदेश बना और अंग्रेजों ने इसका संचालन अपनी प्रयोगशाला के रूप में किया। किसी भी प्रकार की नई प्रयोग भूमि और योजनाओं के प्रारंभिक टेस्ट यही पर किए जाने लगे जैसे, उत्तर भारत का पहला प्रोटेस्टेट चर्च भी ब्यावर में बना, अंग्रेजों ने पुलिसिंग व्यवस्था की पहली चैकी और सिटी डिस्पेंसरी आदि योजनाओं के प्रथम प्रयोग इसी शहर में किए। लगभग 200 से अधिक वर्ष पुरानी अकबर-बीरबल की बादाशाह की सवारी इस शहर की अपनी ऐतिहासिक परंपरा है। अंग्रेज सेनाधिकारी कर्नल डिक्सन ने इस नए नगर को आधुनिक तकनीकि के साथ बसाया और उसे समकोण सड़कों से जोड़ा। ईसा मसीह के कू्रस के आधार पर शहर को बसाया गया और जातिवार बस्तियां बसाई गई। सम्पूर्ण विश्व में ब्यावर एकमात्र शहर है जो कि ईसाई धर्म के प्रतीक चिह्न कू्रस की आकृति पर ससुव्यवस्थित एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कर्नल चाल्र्स डिक्सन द्वारा स्थापित किया गया है। शहर के मध्य से गुजरता मार्ग जिस पर पाली बाजार बसाया गया और शहर की प्रत्येक सड़क से बाजार पहुचा जा सके ऐसी व्यवस्था के लिए समकोण सड़कों का विकास किया गया। शहर के परकोटे से लगी हुई नगर परिषद की भव्य इमारत, जिसके एक और बडा सा मिशन ग्राउण्ड और दूसरी ओर से अंग्रेजी शासन की सबसे बडी होलेंड स्कूल, जिसका नाम देश के प्रथम गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर बदलकर पटेल स्कूल कर दिया गया है। आज की नगर परिषद ब्यावरए जिस इमारत में चल रही है, वह इमारत कभी टाउन हाल के नाम से विख्यात थी। अंग्रेजी शासन की समस्त बागडोर इस क्षेत्र में इसी इमारत से चलती थी। देश को दिया गया सूचना का अधिकार कानून की आवाज पूर्व आईएएस अधिकारी एवं सामाजिक कार्यकत्र्ता अरूणा रॉय एवं उनके संगठन ने ब्यावर के हृदय स्थल चांगगेट से पहलीबार उठाई थी, जहा आजकल स्मारक भी बना हुआ है। प्रदेश के 150 उपखंडों में ब्यावर सबसे बडा उपखण्ड है। ब्यावर नगर परिषद की स्थापना 01 मई 1867 को 1850 ई. के अंग्रेज सरकार के 26वें एक्ट की अनुशंसा में हुई। इसके संचालन के लिए कुल 15 सदस्य होते थे, जिनमें 12 सदस्य जनता द्वारा चुने जाते तथा 03 सदस्यों का मनोनयन अंग्रेज सरकार करती थी। इस समय नगर परिषद का अध्यक्ष अर्थात् चेयरमैन का पद सरकार द्वारा नियुक्त एक्सट्रा असिस्टेंट कमिश्नर होता था, पहले गैर सरकारी अध्यक्ष बनने वाले एडवोकेट लक्ष्मीनारायण माथुर थे। सरकार द्वारा इसके प्रथम सचिव के पद पर बंगाली अखैकुमार को नियुक्त किया गया था।

महिला सशाक्तिकरण एवं नगर परिषद ब्यावर :

भारतवर्ष में महिलाओं के राजनीतिक अधिकार एवं नागरिक क्षेत्रों में कार्य का दौर 90 के दशक से वास्तविक रूप में आरम्भ हुआ। इससे पूर्व यदा-कदा ही महिलाएं राजनीतिक और सार्वजनिक कार्यो में कभी उभर कर आ भी जाती तो अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण ही थी। इसमें भी कभी-कभी तो पुरूषों की अभिलाषाओं की पूर्ति के लिए एक रबर स्टांम्प बनकर ही रह जाती थी। 90 के दशक से पंचायती राज और स्वायत्तशाषी संस्थाओं में आरक्षण और कुछ महिलाओं की दृढ़ इच्छा शक्ति का बड़ा हाथ रहा है। ऐसी ही स्थानीय नगर परिषद ब्यावर में प्रशासन और परिषद के कार्यो की विधिवत शुरूआत प्रथम प्रशासक कैम्पटन डौक्स की नियुक्ति 1904-1905 से होती है। अंग्रेजी हुक्मरानों की नियुक्तियां ब्यावर नगर परिषद में होती रही है, पहले भारतीय ब्यावर नगर परिषद में प्रशासक के रूप में नियुक्त होने वाले सैयद हुसैन (1906-1907) है। किसी महिला की नियुक्ति आजादी के 34 साल बाद में पहलीबार दिनांक 01.03.1981 से 31.03.1981 को सुश्री मीरा सहानी के रूप में होती है। ब्यावर नगर परिषद में सभापति के रूप में नियुक्त होने वाली प्रथम महिलानेत्री तारा झंवर (23.07.2004 से 27.11.2004) थी, जिन्हे राज्य सरकार ने सभापति प्रमोद सांखला के निलंबन के बाद मनोनीत किया था। 21वी सदी में जो शुरूआत तारा झंवर ने की वह निरन्तर आगे बढ़ने लगी। इनके बाद जयश्री जयपाल (28.11.2004 से 30.05.2007), रेखा जटिया (कार्यवाहक सभापति 08.06.2007 से 03.07.2007), श्रीमती पार्वती जाग्रत (04.07.2007 से 05.03.2009) तथा दो बार सभापति बनने का श्रेय श्रीमती शांति डाबला को जाता है जो कि पहलीबार कार्यवाहक सभापति तथा थोडे ही दिनों बाद सभापति (20.05.2009 से 26.11.2009) बनी। महिलाओं की राजनीति में भागीदारी का ग्राफ निरन्तर बढ़ रहा है, ब्यावर नगर परिषद में सर्वोच्च पद सभापति के लिए सबसे लंबी पारी खेलने का अभी तक किसी महिला का रिकार्ड रहा है, तो वो रहा है श्रीमती बबीता चैहान का, वे प्रथमबार निर्वाचित 26.11.2014 को हुई थी।

महिला सहभागिता और जननांकिय स्थिति :

यह पूर्व में ही स्पष्ट किया जा चुका है कि इस शहर की प्राचीनता और वैभव अतिप्राचीन होने के साथ साथ ब्रिटीशकाल के सीधे हस्तक्षेप में होने के कारण यहा पर अंग्रेजियत का विस्तार रहा है। आधुनिक शहर के निर्माता कर्नल डिक्सन ने भी जनसंख्या के हिसाब-किताब और 450 से अधिक भूखण्डों के पट्टे जारी करके जातिवार लोगों को नए शहर में सुनियोजित तरीके से बसाया था। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार ब्यावर शहर एवं ग्रामीण भागों में इस तहसील को बांटा गया हैं और इसी अनुसार भी जनसंख्या आंकलन किया गया है। ब्यावर शहरी क्षेत्र की कुल आबादी 151152 है, जिसमें पुरूष आबादी 77616 तथा महिला 73536 है। यहा साक्षरता भी अच्छी है कुल 84.39 प्रतिशत साक्षरता है, जिसमें पुरूष साक्षरता 91.54 प्रतिशत तथा महिला साक्षरता 76.61 है। शहरी क्षत्र में लिंगानुपात भी संतोषप्रद है, प्रति हजार पुरूषों पर 948 महिलाएं है।

ब्यावर का शहरी जननांकिय आरेख –

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आजादी के समय ब्यावर नगर परिषद के अध्यक्ष एडवोकेट मुकुटबिहारी भार्गव थे, तथा वाइस चेयरमैन पंडित बृजमोहनलाल थे। इस समय वार्डो की संख्या आठ थी, तथा प्रत्येक वार्ड से तीन सदस्य चुनकर आते थे। इस तरह आजादी के बाद तक 24 सदस्य चुनकर और 03 सदस्य सरकार द्वारा मनोनीत होते थे। 1971 में वार्डों की संख्या 22 कर दी गई और प्रत्येक वार्ड से एक सदस्य चुनकर आने लगा। 1972 में नगर परिषद बोर्ड का भंग सरकार द्वारा कर दिया गया और नगर परिषद का संचालन उपखण्ड अधिकारी को प्रशासक लगाकर किया जाने, जिसके विरूद्ध शहर के जागरूक नागरिक द्वारका प्रसाद मित्तल ने राजस्थान उच्च न्यायालय में जनहित याचिका लगाकर पुनः वर्ष 1988 से आम चुनाव कराये जाने लगे और समय सीमा भी अब पांच वर्ष कर दी गई। इस तरह 1988 से 2004 तक 3 बार आम चुनाव हुए, जिसमें कुल 135 पार्षद 16 वर्षो में चुने गए।

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ब्यावर नगर परिषद का विहंगम दृश्य

संदर्भ सूची:

  1. खुली बहियां एवं संचित लेख सूचियां।
  2. साक्षात्कार – इतिहासकार वासुदेव मंगल, संस्थापक ब्यावर इतिहास, साईट।
  3. राजस्थान पत्रिका, 06 फरवरी 2019 राजस्थान नगरपालिका कानून – डाॅ. बसन्तीलाल बाबेल
  4. नगर निगम चुनाव कानून – एड. उद्दीन (युग निर्माता पब्लिकेशन)
  5. महिला सशक्तिकरण, मानचन्द खंडेला (पोइन्टर पब्लिशर्स, जयपुर)
  6. आधी आबादी को पूरा हक, सरोकार – इरा झा (दैनिक जागरण, 1 सिंतबर 2009)
  7. नारी सशक्तिकरण – आशा कौशिक
  8. राजस्थान पत्रिका – समाचार पत्र
  9. दैनिक भास्कर – समाचार पत्र
  10. दैनिक नवज्योति – समाचार पत्र
  11. इलेक्ट्रोनिक मीडिया एवं इंटरनेट
  12. www.urban.rajasthan.gov.in
  13. www.censussindia.gov.in
  14. www.beawarhistory.com