बागों के नए कलियों सा आया था ,माँ तेरी कोख में।
नन्ही सी मेरी सूरत पर तुमने अपना सब कुछ न्योछार दिया
बरे जतन से तुमने मुझको पाला
,सुधियों का जलपान कराया
नाजुक सी मेरी कदमो को,
हाथ पकड़ कर, तुमने चलना सीखाया ।
छाव तले तेरे आँचल के फूलों सा हू मैं खिला हुआ।
तेरे मोद भरे दृगों के आगे , मैं हूँ अब बड़ा हुआ।
तनिक नही है तुम पर बाधा,
फिर भी करती हो स्नेह बहुत ज्यादा।
मेरी भी अभिलाषा है,
चरणों में मैं बैकुण्ठ पखारू
अपने घर में ,
मैं स्वर्ग को पाऊं।