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हिंदीतरभाषी क्षेत्रों में हिंदी पत्रकारिता
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मणिपुर में हिंदी पत्रकारिता

देवराज

पृष्ठभूमि :
मणिपुर में हिंदी पत्रकारिता की पृष्ठभूमि का गहरा संबंध ‘आज़ाद हिंद फौज’ के विजय अभियान और दूसरे विश्व-युद्ध से है। दक्षिण-पूर्व एशिया के जिस हिस्से में विश्व-युद्ध लड़ा गया, उसमें भारत का मणिपुर-अंचल भी आता है। आज़ाद हिंद फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत को अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद से मुक्त कराने के लिए म्यांमार की ओर से अभियान शुरू किया था। सन 1944 में आज़ाद हिंद फौज के कर्नल शौक़तअली मलिक ने मणिपुर के प्रसिद्ध सांस्कृतिक नगर, मोइराङ् पहुँच कर स्वतंत्रता-ध्वज फहरा दिया था। भारत के किसी अंचल के, साम्राज्यवाद से मुक्त होकर स्वतंत्रता की वायु में साँस लेने की यह पहली घटना थी।
कहा जाता है कि साम्राज्यवाद से मुक्ति के अपने ऐतिहासिक-अभियान की जानकारी जनता तक पहुँचा कर सुभाषचंद्र बोस स्वतंत्रता-संग्राम का विस्तार करना चाहते थे। लेकिन उनके पास ऐसे लोग नहीं थे, जो मणिपुरी तथा जनजातीय भाषाओं में सामग्री निर्मित कर सकें। तब उन्होंने हिंदी भाषा में पर्चे छपवा कर बँटवाने का निश्चय किया। आज़ाद हिंद फौज के सैनिक अभियान के काफी पहले ही मणिपुर के दक्षिणी भू-भाग के गाँवों-नगरों में ये पर्चे पहुँच चुके थे। सुभाषचंद्र बोस की इस सूझबूझ का यह लाभ हुआ कि म्यानमार से सटे दक्षिण मणिपुर के गांवों और कस्बों में अनेक लोग आज़ाद हिंद फौज का सहयोग करने को तैयार हो गए। मणिपुर के लोगों द्वारा हिंदी का कामचलाऊ ज्ञान प्राप्त करने के मूल में कुछ रोचक कारण हैं।
हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ने सन 1928 में मणिपुर में हिंदी प्रचार आंदोलन प्रारम्भ कर दिया था। उसके बाद सन 1939 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की राज्य-शाखा के रूप में इम्फाल में मणिपुर राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना हुई। इन दोनों संस्थाओं के भी बहुत पहले धार्मिक यात्राओं के कारण मणिपुर में हिंदी का प्रवेश हो चुका था। इस प्रकार आज़ाद हिंद फौज के आने के पूर्व ही मणिपुर के अधिकांश नगरों और गाँवों में हिंदी जानने वाले कुछ-न-कुछ लोग मिलने लगे थे। इन्होंने ही सुभाषचंद्र बोस के हिंदी पर्चों की सामग्री का मणिपुरी तथा जनजातीय भाषाओं में अनुवाद करके अपने आसपास के लोगों को स्वाधीनता-संग्राम की जानकारी दी। इससे जो जागरण आया, उसने साधारण जनता के मन में विश्वयुद्ध के समाचारों के लिए ललक भी जगाई, जिसने अद्भुत ढंग से हिंदी पत्रकारिता की पृष्ठभूमि का निर्माण किया। उस समय मणिपुरी पत्रों का क्षेत्र सीमित था, जबकि अँग्रेजी समाचारपत्र ब्रिटिश सत्ता के प्रभाव में होने के चलते निष्पक्ष समाचार नहीं दे पा रहे थे। इसका लाभ हिंदी को मिला। प्रारंभिक हिंदी-सेवी, पं. ललिता माधव शर्मा मुंबई से ‘श्रीवेंकटेश्वर समाचार’ मंगा कर लोगों को सुनाने लगे। जो हिंदी पूरी तरह समझ नहीं पाते थे, उनके लिए वे समाचारों का मणिपुरी में अनुवाद कर देते थे। मणिपुर में हिंदी पत्रकारिता के इतिहास की सामग्री की खोज में मैं पं. ललितामाधव शर्मा की सुपुत्री किरणमाला शर्मा से मिला था। उन्होंने प्रयाग में महादेवी वर्मा के घर रह कर हिंदी का अध्ययन किया था और मणिपुर लौट कर आजीवन हिंदी-शिक्षण से जुड़ी रही थीं। किरणमाला शर्मा ने बताया था कि श्रीवेंकटेश्वर समाचार डाक से आता था । शाम को आस-पास के अनेक लोग ललितामाधव शर्मा के घर एकत्र हो जाते थे और शर्माजी उन्हें समाचार पढ़कर सुनाते थे। प्रारंभ में उन्होंने अनुवाद पद्धति का सहारा लिया, थोड़े दिनों बाद अनुवाद करने की आवश्यकता नहीं रही। समाचार जानने की व्याकुलता ने हिंदी शब्दों के अर्थ आसानी से लोगों के मस्तिष्क में बैठा दिए। इससे लोगों ने हिंदी सीखने की प्रेरणा भी ली और हिंदी पत्रकारिता की भूमिका भी बनी।

इतिहास :
मणिपुर में हिंदी की पहली पत्रिका द्वितीय विश्वयुद्ध के अंतिम दिनों में प्रकाश में आई। यह हस्तलिखित रूप में प्रारंभ हुई थी । दुर्भाग्य का विषय है कि वर्षों की श्रमसाध्य खोज के पश्चात् भी न तो इस पत्रिका का नाम पता चल सका और न इसके संपादक का ही पूरा नाम ज्ञात हो सका। छोटी और महत्वहीन ही सही, लेकिन हमारा ध्यान हिंदी पत्रकारिता के इतिहास की एक त्रासदी की ओर जाना चाहिए। यह बताने की आवश्यकता नहीं कि विश्वयुद्ध के कारण मणिपुर का जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था, जिसके चलते सैकड़ों घटनाओं के ठोस प्रमाण और संस्थाओं के पुराने अभिलेख पूरी तरह नष्ट हो गए। उन्हीं में, इस प्रथम हिंदी पत्रिका के अंक भी हमेशा के लिए काल के गाल में समा गए । इम्फाल के पाओना बाज़ार स्थित ठाकुरबाड़ी के स्वामी हिंदी और संस्कृत के प्रकांड विद्वान पं. पूर्णानंद सरस्वती उस पत्रिका के प्रकाशन में सहयोगी थे। मैं उनके जीवन की संध्या में उनसे मिल सका। नियति का यह क्रूर परिहास रहा कि तब तक पंडित जी पर वार्धक्य प्रहार कर चुका था और उनकी स्मृति बहुत क्षीण हो चुकी थी। मैं दिन-दिन भर उनके पास बैठता था। आशा थी कि उन्हें किसी न किसी क्षण मणिपुर में हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभ करने वाली पत्रिका के संबंध में सही-सही और पूर्ण जानकारी की स्मृति हो आएगी, किंतु यह आशा पूरी तरह सफल नहीं हो सकी। किसी-किसी क्षण तड़ित-कौंध की तरह एक-एक कर जो बातें उन्हें याद आई, उनसे केवल इतनी ही इतिहास-शृंखला बन सकी कि द्वितीय विश्वयुद्ध के अंतिम वर्षों में इम्फाल से एक हस्तलिखित पत्रिका प्रकाशित होनी प्रारंभ हुई थी। उसके संपादक एक जैन सज्जन थे। वे पाओना बाजार, इम्फाल के जैन मंदिर में पुरोहित का कार्य करते थे। उन्होंने समाचार तथा सामाजिक पक्षों पर लोगों को जानकारी देने के लिए यह प्रयास किया था। पत्रिका के प्रथम अंक की केवल पच्चीस प्रतियाँ प्रकाशित की गई थीं। ठाकुरबाड़ी जैन मंदिर के एकदम निकट है, अत: पूर्णानंद सरस्वती का जैन-पुरोहित से परिचय होना स्वाभाविक था। दोनों की रुचियाँ भी समान थीं, इसलिए जब एक हिंदी पत्रिका प्रारंभ करने की योजना बनी, तो पूर्णानंद जी ने सामग्री संकलन के साथ-साथ हस्त-लिखित प्रतियाँ तैयार करने और वितरण के कार्य में सहयोग का दायित्व निभाया। पत्रिका के अंक भी सहयोग के आधार पर, अर्थात एक पाठक द्वारा दूसरे पाठक को देकर पढ़े जाते थे। विश्व-युद्ध और साम्राज्यवाद के विरुद्ध सामाजिक जागरण तथा हिंदी पत्रकारिता के इस संबंध को समझा जाना चाहिए।
मणिपुर से दूसरी हिंदी पत्रिका सन् 1954-55 में ‘साइक्लोस्टाइल्ड’ रूप में प्रकाशित हुई। इसके प्रकाशन का श्रेय मोहनबिहारी, सिद्धनाथ प्रसाद, रामनाथ प्रसाद और झाबरमल जैन को है। पत्रिका का अधिकांश भार श्री मोहनबिहारी के कंधों पर था, किंतु संपादन में मुख्य भूमिका सिद्धनाथ प्रसाद की थी। सामग्री एकत्र हो जाने पर साइक्लोस्टाइल्ड की जाती थी। मुखपृष्ठ कभी सिद्धनाथ प्रसाद और कभी रामनाथ प्रसाद बनाते थे। इस पत्रिका का नाम ‘’कामाख्या न्यूज एक्सप्रेस’’ था। मोहनबिहारी और सिद्धनाथ प्रसाद कविता-कहानियाँ रचते थे, जिन्हें इस पत्रिका में स्थान दिया जाता था। इसी के साथ समाचार और सामाजिक विषयों पर जानकारी रहती थी। पत्रिका के वितरण और भागदौड़ के कार्य मुख्यत: झाबरमल जैन के जिम्मे थे। ‘कामाख्या न्यूज एक्सप्रेस’ द्वि-भाषी (हिंदी-अंग्रेजी) साप्ताहिक पत्रिका थी। कभी-कभी इसमें अनूदित सामग्री का प्रकाशन भी होता था और कभी राजस्थानी (मुख्यत: मारवाड़ी) की सामग्री भी दी जाती थी। खोजकर्ता को झाबरमल जैन, सिद्धनाथ प्रसाद और रामनाथ प्रसाद ने पत्रिका की सामग्री की प्रकृति के साथ यह जानकारी भी दी थी कि इसके मुखपृष्ठ पर कभी ‘त्रिशूल’ और कभी ‘कामाख्या’ का रेखाचित्र भी दिया जाता था।
मणिपुर में प्रथम मुद्रित पत्रिका 15 अगस्त, सन् 1960 में नागरी लिपि प्रचार सभा द्वारा प्रकाशित की गई। ‘आधुनिक’’ नामक इस साप्ताहिक पत्रिका को तरूण प्रेस (स्वराज प्रेस, उरिपोक, इम्फाल) में छापे जाने का निश्चय किया गया। इसके संपादक बी. नयन शर्मा एवं सी-एच. निशान सिंह थे। प्रारंभ में प्रकाशन-संस्था और संपादक मंडल को आर्थिक कठिनाइयों का अनुमान नहीं था, किंतु जब धन की व्यवस्था नहीं हो सकी, तो इसका दूसरा अंक मासिक के रूप में और तीसरा त्रैमासिक के रूप में प्रकाशित किया गया। इन अंकों के धन की व्यवस्था निशान सिंह ने अपने प्रयास से की। शायद इसका प्रकाशन ही निशान सिंह ने अपने उत्साह के कारण, ‘घर फूँक तमाशा’ देखने की राह पर करवाया था, सो साप्ताहिक से त्रैमासिक तक आते-आते उन्होंने सचमुच अपना घर फूँक लिया और जब छावन भी बाकी न रहा, तो हताश निशान सिंह संपादकी छोड़कर हिंदी-मणिपुरी अनुवाद कार्य में जुटकर राष्ट्र और राष्ट्रभाषा की सेवा करने लगे। आधुनिक का एक अंक खोजकर्ता को मिला था, जिसे उसने सन 1985 में उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद नगर में आयोजित लेखक-सम्मेलन के अवसर पर लगी प्रदर्शनी में बाबा नागार्जुन और सम्मेलन-संयोजक प्रेमचंद्र जैन के कहने पर दर्शनार्थ रखा था। वहाँ से कोई उत्साही पाठक वह अंक अपने साथ ले गया, जो संभवत: उसके व्यक्तिगत पुस्तकालय की शोभा बढ़ा रहा होगा।
सन् 1964 में ’मणिपुर शुध्दि संगठन शिक्षा सम्मेलन’’ द्वारा ‘’सम्मेलन गजट’’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया गया। इसके संपादक के. ब्रजमोहन देव शर्मा थे और इसका उद्देश्य हिंदी के माध्यम से मणिपुरी जीवन व संस्कृति को सारे भारत के सामने लाना था। ‘सम्मेलन गजट’ का प्रवेशांक तीन भाषाओं –हिंदी, मणिपुरी व अंग्रेजी में छापा गया था। कुछ अंक प्रकाशित होने के बाद यह पत्रिका भी बंद हो गई । के. ब्रजमोहन देव शर्मा ने ही सन् 1972 में ‘नागरिक-पंथ’ नाम से एक हिंदी-मणिपुरी दैनिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया। यह बी.डी. प्रेस उरिपोक, इम्फाल से प्रकाशित किया गया। काफी वर्ष तक वहाँ से प्रकाशित होने के बाद यह नाओरेमथोड़् इम्फाल से प्रकाशित होने लगा। नागरिक पंथ, दैनिक होने के कारण मणिपुर के जीवन में अपेक्षाकृत अधिक हस्तक्षेप कर सका। इसके माध्यम से थोड़ी मात्रा में ही सही, प्रतिदिन हिंदी की सामग्री पाठकों को मिलने लगी। इस लेखक ने अपने दीर्घकालीन मणिपुर प्रवास में सन् 1990 के पश्चात् मणिपुरी भाषा की फिल्मों की समीक्षा प्रारंभ की थी। इनमें से अधिकांश समीक्षाएँ नागरिक पंथ में प्रकाशित हुई थीं। हिंदी फिल्म-समीक्षा की तर्ज़ पर मणिपुरी फिल्मों के विषय में हिंदी में किया जानेवाला यह प्रथम प्रयास था। गुवाहाटी (असम) और अन्य स्थानों से प्रकाशित होने वाले सभी दैनिक समाचारपत्र सातवें दशक के बाद ही अस्तित्व में आए, अंत: नागरिक पंथ को पूर्वोत्तर भारत में दैनिक हिंदी पत्रकारिता के प्रारंभ का श्रेय भी दिया जाना चाहिए।
सन् 1973 में इम्फाल की साहित्यिक संस्था ‘चिंतना’ ने एक पत्रिका प्रकाशित की। इस पत्रिका का नाम ‘चिंतक’ था तथा इसके संपादक आकाशवाणी इम्फाल में कार्यरत डॉ. सुशीलकांत सिन्हा थे। इसके प्रकाशन का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाना और एक वैचारिक आंदोलन की शुरुआता करना घोषित किया गया था। प्रथम अंक से इस दृष्टिकोण की पुष्टि भी होती है। आशा थी कि यह अभियान गति पकड़ेगा, किंतु एक अंक के पश्चात् यह पत्रिका आगे नहीं चल सकी।
सन् 1976 में राधागोविन्द थोङ्गाम के प्रयास से उन्हीं के संपादन में ‘हिंदी शिक्षक दीप’ नामक पत्रिका का प्रकाशन ‘’अखिल मणिपुर हिंदी शिक्षक संघ’’ ने किया। इस पत्रिका का मुद्रण ‘दि मणिपुर गीता प्रेस, शिङजमै बाजार, इम्फाल’ में होता था । इसका मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा का प्रचार और मणिपुर राज्य के हिंदी शिक्षकों की समस्याओं को प्रकाश में लाना था। मणिपुर से प्रकाशित हिंदी पत्रिकाओं में यह पहली थी, जिसमें पर्याप्त मात्रा में कविताएँ, भाषा संबंधी लेख, कला व संस्कृति संबंधी सामग्री और सामाजिक समस्याओं पर आलोचनात्मक सामग्री का प्रकाशन किया गया। प्रवेशांक की भव्यता के अनुरुप ही ‘हिंदी शिक्षक दीप’ का दूसरा अंक भी प्रकाशित हुआ, किंतु विपरीत परिस्थितियों के कारण तीसरा अंक प्रकाशित होने का अवसर नहीं आया । फिर भी इस पत्रिका ने उस सपने को एक सीमा तक अवश्य पूरा किया, जिसे ललितामाधव शर्मा ने बिना कोई पत्रिका निकाले और जैन मंदिर के पुरोहित उन अज्ञातनामा जैन सज्जन ने हस्तालिखित पत्रिका निकाल कर देखा था।
सन् 1977 में फुराइलातपम गोकुलानंद शर्मा के संपादन में ‘पर्वती वाणी’ नाम से एक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसका प्रथम अंक दिसंबर, 1977 में छपा । प्रवेशांक का मुद्रण ‘मॉडर्न प्रिंटर्स, गांधी एवेन्यु, इम्फाल’ के लिए ‘आदिम जाति हिंदी प्रेस, मिनुथोड़् इम्फाल’ द्वारा किया गया। ‘पर्वती वाणी’ मणिपुर से प्रकाशित ऐसी पहली पत्रिका थी, जिसने अपना केंद्रीय लक्ष्य हिंदी भाषा का प्रचार घोषित किया। यह मणिपुर राज्य की जनजातियों और अनुसूचित जातियों के लोगों के मध्य हिंदी का प्रचार-प्रसार करना चाहती थी। उन दिनों इसके संपादक गोकुलानंद शर्मा ‘नागा हिंदी विद्यापीठ’ के माध्यम से हिंदी प्रचार अभियान में जुटे हुए थे। यह पत्रिका तीन अंको तक छापी जाती रही, किंतु भारत सरकार ने इसके नाम को स्वीकृत नहीं दी। शर्माजी पत्रिका निकालने का संकल्प कर चुके थे, अत: उन्होंने इसका नाम बदलकर अपने मार्ग पर बढ़ने का निश्चय किया। मार्च/अप्रैल 1978 से पर्वती वाणी के स्थान पर ‘पूर्वी वाणी’ नामक पत्रिका प्रकाशित होने लगी । संपादक, प्रकाशक, मुद्रक, उद्देश्य आदि वही के वही रहे। यह पत्रिका सन् 1980 तक छपती रही। इसके पश्चात किसी कारण इसका प्रकाशन स्थगित हो गया।
सन् 1980 में फुराइलात्पम गोकुलानंद शर्मा के संपादन में ‘युमशकैश’ नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। ‘मणिपुरी हिंदी शिक्षक संघ, इम्फाल’ द्वारा प्रकाशित यह पत्रिका हिंदी प्रचार के साथ-साथ साहित्य और संस्कृति के विकास को भी समर्पित थी। यह प्रवेशांक (1980) से लेकर संपादक के देहांत (2017) तक प्रकाशित होती रही। इस लेखक ने मणिपुर पहुँचने (1985) के बाद से ही इस पत्रिका के सलाहकार के रूप में कार्य किया। युमशकैश ने मणिपुर राज्य में हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में सैंतीस वर्सः तक निरंतर प्रकाशित होते रहने का कीर्तमान स्थापित किया। फुराइलात्पम गोकुलानंद शर्मा ने इसका नाम अपने जन्मवार (युमशकैश, अर्थात बुधवार) के आ्रधार पर रखा था। यह मासिक रूप में प्रकाशित होने वाली ऐसी पत्रिका बनी, जिसने भाषा-शिक्षण का कार्य भी किया। इस पत्रिका के माध्यम से पारिभाषिक शब्दावली तैयार करने की योजना पर भी कार्य किया गया। युमशकैश को मणिपुर की कुछ हिंदी प्रचार संस्थाओं में घुस आई अनियमितताओं और उन्हें विकसित करने में मुख्य भूमिका निभाने वाले केंद्र सरकार के हिंदी से जुडे अधिकारियों के विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ करने का श्रेय भी प्राप्त है। हिंदी क्षेत्रों में युमशकैश को पर्याप्त सम्मान मिला और उसके संपादक को अंतरराष्ट्रीय कला एवं संस्कृति परिषद, नजीबाबाद, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा द्वारा सम्मानित किया गया।
सन् 1983 में ‘अखिल मणिपुर हिंदी शिक्षक संघ’ द्वारा ‘कुंदो परेङ’ नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया गया। कुंदो परेड़् का अर्थ है—कुंद पुष्प की माला। यह पत्रिका अपने नाम के अनुरूप भाषा रूपी पुष्पों की माला में हिंदी भाषा पुष्प को विशेष स्थान प्रदान करते हुए अपने मार्ग पर आगे बढ़ रही है। यह प्रारंभ में षट्मामिक थी। बाद में इसे त्रैमासिक कर दिया गया और कुछ वर्षों बाद यह अनियतकालीन हो गई। इसका कारण आर्थिक साधनों का अभाव है। ‘कुंदो परेङ’ के प्रवेशांक का संपादकीय मणिपुरी भाषा में प्रकाशित हुआ था। यह क्रम दो वर्ष तक चला। इस पत्रिका का ‘हिंदी सेवक समान अंक’ पर्याप्त चर्चित हुआ। कुंदो परेङ के पहले और दूसरे अंक का संपादन एस. कुलचंद्र शर्मा शास्त्री ने किया था। बाद में श्री बी. नोदियाचाँद सिंह इसका संपादन करने लगे।
14 सितंबर 1985 को ‘मणिपुर हिंदी परिषद पत्रिका’ (मासिक) के प्रकाशन के साथ मणिपुर राज्य की हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत हुई । इसकी योजना इस लेखक सहित इबोहल सिंह काङजम, राधागोविन्द थोङाम और सिद्धनाथ प्रसाद ने तैयार की थी। राधागोविंद थोङाम इसके प्रथम संपादक बने। उनके सहयोग के लिए एक संपादक मंडल का भी गठन किया गया। ‘मणिपुर हिंदी परिषद पत्रिका’ ने हिंदी प्रचार के साथ-साथ हिंदी और मणिपुरी भाषाओं के साहित्य की उन्नति को अपना मूल उद्देश्य बनाया। इस पत्रिका के प्रत्येक अंक में मणिपुरी से हिंदी में अनुदित सामग्री प्रकाशित होने लगी। कभी-कभी कविताओं के हिंदी अनुवाद के साथ मूल-पाठ नागरी लिपि में भी प्रकशित किया जाने लगा। इस पत्रिका ने हिंदी और मणिपुरी के रचनाकारों पर केंद्रित विशेषांक प्रकाशित किए, जो पाठकों में चर्चित हुए। हिंदी के मैथिलीशरण गुप्त और तुलसीदास तथा मणिपुरी के लमाबम कमल, नीलवीर शास्त्री, हिजम अड़ाड़्ह, कवि चाओबा आदि पर केंद्रित अंक ऐसे ही हैं। इस पत्रिका के माध्यम से हिंदी और मणिपुरी भाषाओं का परिचय बढ़ा और साहित्यिक आदान-प्रदान को गति मिली । रचनाकारों पर केंद्रित विशेषांकों के अतिरिक्त यह पत्रिका विभिन्न रचनाकारों के साक्षात्कार और उनकी रचनाएँ भी प्रकाशित करती रहती है। इस पत्रिका ने मणिपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की माँग को लेकर चल रहे आंदोलन के अवसर पर ‘मणिपुरी भाषा माँग विशेषांक’ प्रकाशित किया था। इससे सारे देश के सामने मणिपुरी भाषा व साहित्य का इतिहास तथा भाषा-माँग का औचित्य प्रस्तुत किया जा सका। ‘मणिपुर हिंदी परिषद पत्रिका’ मासिक के रूप में प्रकाशित हुई थी । सन् 1991 में इस लेखक को इसका संपादक बनाया गया, तब से यह ‘महिम पत्रिका’ नाम से त्रैमासिक के रूप में प्रकाशित होने लगी। सन 2001 से महिप का संपादन इबोहल सिंह काङजम द्वारा किया जाने लगा।
मई सन् 1988 में ‘मणिपुर महिला समाज’ नामक मासिक पत्रिका प्रकाशित हुई। इसका प्रकाशन ‘महिला विकास क्रेंद्र इम्फाल’ द्वारा किया गया। इस पत्रिका का उद्देश्य संपूर्ण महिला जागृति घोषित किया गया। इसका प्रवेशांक हिंदी व मणिपुरी में छपा। दूसरे अंक में अंग्रेजी भाषा को भी स्थान दिया गया। ‘मणिपुर महिला समाज’ में दहेज, विवाह-विच्छेद, नारी-उत्पीड़न और अन्य नारी समस्याओं को सुलझाने वाली सामग्री का प्रकाशन हुआ। इसके संपादन का भार फुराइलात्पम गोकुलानंद शर्मा ने सँभाला। इस लेखक ने मणीपुर महिला समाज के परामर्शदाता के रूप में कार्य किया।
एक जनवरी सन् 1991 को एस. गोपेन्द्र शर्मा के संपादन में ‘जगदम्बी’ नामक साप्ताहिक समाचार-पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। यह साप्ताहिक जनोपयोगी समाचारों का प्रकाशन करता था। दस अंकों तक गोपेन्द्र शर्मा ने इसे उत्साहपूर्वक प्रकाशित किया, किंतु आर्थिक दृष्टि से निश्चिंत न हो पाने के कारण उन्हें इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा। बाद में वे इसे हिंदी के बदले मणिपुरी दैनिक के रूप में प्रकाशित करने लगे।
जुलाई सन् 1993 में ‘नगर राज-भाषा कार्यान्वयन समिति, इम्फाल’ द्वारा ‘नीलकमल’ नाम से एक अर्धवार्षिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया गया। इसे साइक्लोस्टाइल्ड रूप में निकाला गया। इसका संपादन-कार्य वेंकटलाल शर्मा, के.सी. शर्मा और ए.के. बक्सी ने सँभाला। इस पत्रिका का उद्देश्य मणिपुर के सरकारी कार्यालयों में राजभाषा के रूप में हिंदी के व्यवहार की जानकारी देने के साथ-साथ कार्यालय कर्मियों में लेखन व पठन की प्रवृत्ति का विकास करना भी था। इसके अतिरिक्त नीलकमल में स्थानीय साहित्यकारों की हिंदी रचनाओं व अनुवाद को भी स्थान दिया गया था।
अगस्त, सन् 1999 श्री एस. गोपेन्द्र शर्मा ने ‘चयोल-पाउ’ नामक हिंदी साप्ताहिक का प्रकाशन प्रारंभ किया। इसका मोटो लालबहादुर शास्त्री द्वारा निर्मित उद्घोष में अटलबिहारी वाजपेयी द्वारा किए गए परिवर्धन के फलस्वरूप नव-निर्मित उद्घोष के शब्दों का क्रम बदल कर ‘जय किसान जय जवान जय विज्ञान’ रखा गया। मुखपृष्ठ पर इस समाचार साप्ताहिक का नाम मीतैलिपि में छापा जाता था। इसमें ‘दिवा स्वप्न’ नाम से समसामयिक घटनाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए एक स्थायी स्तंभ भी प्रारंभ किया गया। समाचार साप्ताहिक होने के कारण इस पत्र में मणिपुरी जन-जीवन को प्रभावित करने वाली घटनाओं का विवरण मूल रूप से देना प्रारंभ किया गया। इसका एक पृष्ठ साहित्य को भी समर्पित किया गया, जिसके अंतर्गत मौलिक, अनूदित और समीक्षा सामग्री प्रकाशित की जाने लगी। दिनांक 9. 8. 2000 को इस पत्र की वर्षगाँठ पर इसका विशेषांक निकाला गया। एस. गोपेन्द्र शर्मा की मृत्यु के पश्चात् भी यह साप्ताहिक समाचार पत्र चलता रहा। अज्ञात कारणों से 3 जून सन् 2007 से चयोल-पाउ का नाम ‘मणिपुरी चायोल-पाउ’ कर दिया गया और डॉ. आर गोविन्द इसके मुख्य संपादक बन गए। गोपेंद्र शर्मा की पुत्री, एस. निर्मला देवी ने संपादक के रूप में कार्य करना प्रारंभ किया। परिवर्तित नाम वाले समाचार साप्ताहिक के प्रस्तुतीकरण में सभी विशेषताएँ चयोल पाउ जैसी ही रहीं।
‘नागरिक पंथ’ की परंपरा में सन् 2002 में मोइराङ से एक हिंदी दैनिक का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। मणिपुर की विश्व प्रसिद्ध झील, ‘लोकताक’ के नाम पर इसका नाम ‘लोकताक एक्सप्रेस’ रखा गया। इस दैनिक के संपादक और प्रकाशक रामानंद सिंह कैशाम थे। यह केवल एक पन्ने का था और इस दैनिक के कुछ ही अंक प्रकाशित हो सके। बाद में इसके प्रकाशन का अधिकार सीएच. निशान सिंह ने प्राप्त कर लिया, किंतु वे कोई अंक प्रकशित नहीं कर पाए।
सन् 2007 में ‘नागा हिंदी विद्यापीठ, इम्फाल’ द्वारा ‘लट-चम’ नाम से एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया गया। इसके प्रधान संपादक एस. खङ्मैदुन कबुई बने। लट-चम कबुई जनजाति की भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है भाषा-शिक्षण, संवाद, आपस की बातचीत या समाचार। मणिपुर के किसी जनजातीय व्यक्ति द्वारा संपादित यह प्रथम हिंदी पत्रिका है।
सन 2008 में चारहजारे नामक स्थान से मासिक पत्रिका ‘भारती’ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसके मुख पृष्ठ पर कोष्ठक में लिखा गया— “निष्पक्ष, निर्भीक एवं भ्रष्टाचार विरोधी मासिक पत्रिका”। भारती के संपादक हरिमोहन पोख्रेल थे। इसके प्रवेशांक (सितंबर, 2008) में भारत सरकार और भूमिगत कुकी वर्गों के बीच वार्ता के बारे में समाचार दिया गया, जिससे पत्रकारिता के बदलते स्वरूप का संकेत मिलता है।
25 सितंबर सन् 2011 को थोंड़ाम भारती ‘कविराज’ के संपादन में ‘मणि कुसुम’ नामक एक पत्रिका (त्रैमासिक) का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। जुलाई-सितंबर, 2011 के प्रवेशांक में यह लोक मंगल उद्बोधनी समिति, इम्फाल द्वारा स्थापित ‘हिंदी विश्व सेवा संघ’ की मुख पत्रिका बताई गई है।
मणिपुर की हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में मणिपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का भी योगदान है। हिंदी विभाग द्वारा संचालित ‘हिंदी परिषद’ ने 30 नवंबर 1987 को एक हस्तलिखित दीवार-पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया। यह पत्रिका विद्यार्थियों द्वारा तैयार की जाती और परिषद के निर्देशक की स्वीकृति के बाद पाठकों के लिए दीवार पर चिपका दी जाती थी। यह क्रम तीन वर्ष तक चलता रहा। इसके पश्चात सन् 1992 में विभाग की हिंदी परिषद ने ‘प्रयास’ नाम से एक साइक्लोस्टाइल्ड पत्रिका प्रकाशित करनी प्रारंभ की। यह अनियतकालीन थी। इसके प्रवेशांक की एक सौ प्रतियाँ तैयार हुई थीं और अधिकांश सामग्री छात्रों द्वारा तैयार की गई थी। इस अंक में मणिपुर के समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों को एकत्र करके उमावती और इबेहाइबी नामक छात्राओं ने दो सर्वेक्षण प्रकाशित कराए थे। इनमें से एक सर्वेक्षण मणिपुरी समाज में व्याप्त समस्याओं/अपराधों और दूसरा साहित्यिक-सांस्कृतिक चेतना पर केंद्रित था। दोनों सर्वेक्षणों द्वारा तत्कालीन मणिपुर राज्य के यथार्थ को उजागर किया गया था। मणिपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा प्रकाशित सभी पत्रिकाओं का संपादन इस लेखक द्वारा किया गया था।

[खोजकर्ता की घोषणा : प्रस्तुत आलेख के लेखक ने सन 1985 में मणिपुर में हिंदी पत्रकारिता के इतिहास की खोज प्रारंभ की थी। बाद के वर्षों में संपूर्ण पूर्वोत्तर भारत तक इस खोज का विस्तार हुआ। मणिपुर की हिंदी पत्रकारिता के इतिहास पर केंद्रित इस लेखक का पहला आलेख राजेंद्र अवस्थी के संपादन में प्रकाशित कादम्बिनी पत्रिका (वर्ष 36, अंक 4, फरवरी 1996) में प्रकाशित हुआ था। यह आलेख कुछ नवीन तथ्यों के आधार पर परिवर्धित होकर सन 2001 में सुरेश गौतम और वीणा गौतम के संपादन में प्रकाशित ग्रंथ, भारतीय पत्रकारिता : कल, आज और कल (सत्साहित्य प्रकाशन, दिल्ली) में प्रकाशित हुआ। इस बीच खोज जारी रही और अन्य नवीन तथ्य उपलब्ध हुए। फलस्वरूप इसका एक परिवर्धित रूप सन 2014 में अरिबम ब्रजकुमार शर्मा की पुस्तक, हिंदी को मणिपुर की देन (यश पब्लिकेशंस, दिल्ली) में सम्मिलित किया गया। तब से अब तक जो तथ्य उपलब्ध हुए, उन्हें सम्मिलित करते हुए इस आलेख का नवीनतम परिवर्धित रूप प्रस्तुत किया जा रहा है। सूचनीय है कि खोजकर्ता को प्रारंभ से लेकर अब तक अपने खोजे मात्र एक तथ्य में संशोधन करना पड़ा है, शेष प्रत्येक परिवर्धन में नवीन तथ्य जोड़े गए हैं।]