क्यों तुमने मेरे सुने मन के,
दरवाजे पर दस्तक दी है,
मैंने तो अपने मन के सब,
दरवाजों को बंद रखा था।
क्यों तुमने मुझ में फिर से,
जीने की नई ललक भर दी है,
मैंने तो अपनी जीने की,
आशाएं ही छोड़ रखी थी,
क्यों तुमने मुझ में नई नई,
उम्मीदें जागृत कर दी है,
मैंने तो सभी भावनाओं को,
अपने मन में बंद किया था।
मेरा मन तो अंधकार में,
डूब रहा था,
फिर क्यों तुमने आकर इसने,
सूरज की किरणें भर दी है।
क्या मेरे इस सूनेपन को,
तुम भर पाओगे?
बतलाओ मेरे दिल में,
क्या बस पाओगे?
डॉ रीता तिवारी।