थर्ड जेंडर –सामाजिक अवधारणा एवं पुनरावलोकन
शोभा जैन
हमारा पूरा समाज दो स्तम्भों पर खड़ा है पुरुष और स्त्री । लेकिन हमारे समाज में इन दो लिंगों के अलावा भी एक अन्य प्रजाति का अस्तित्व मौजूद है । समाज में इन्हें ‘थर्ड जेंडर’ और आमतौर सामाजिक रूप से उपनाम ‘किन्नर’ शब्द से भी संबोधित किया जाता है । प्रकृति में मौजूद ये प्रजाति नर नारी के अलावा एक अन्य वर्ग में गिनी जाती है जो न तो पूरी तरह नर होता है और न नारी। जिसे लोग किन्नर या फिर ट्रांसजेंडर के नाम से संबोधित करते हैं। इसी कारण आम लोगों में उनके जीवन और रहन-सहन को जानने की जिज्ञासा भी बनी रहती है। स्त्री-पुरुष के साथ ही शास्त्रों में किन्नरों का वर्णन भी मिलता है। ‘थर्ड जेंडर’ के अंदर एक अलग गुण पाए जाते हैं। इनमे पुरुष और स्त्री दोनों के गुण एक साथ पाए जाते हैं। संविधान में इन्हें इंटरसेक्स, ट्रांससेक्सुअल और ट्रांसजेंडर के रूप में पहचाना गया और इनकी पहचान को थर्ड जेंडर में ट्रांसजेंडर श्रेणी में रखा गया । न्यायालय द्वारा किन्नर समाज को तीसरे दर्जे का नागरिक एवं आरक्षण दे कर समाज में उनके प्रति सद्भावना का संदेश दिया गया है। दरअसल ये सदैव समाज में चर्चा का विषय रहें हैं | आज कल इनकी मानसिक स्थिति और सोच पर कई शोध हुए हैं | आखिर हैं तो ये भी ईश्वर के बनाये इंसान ही। दरअसल ‘थर्ड जेंडर’ का संदर्भ हमारे मस्तिष्क से है, यदि कोई बच्चा लड़की पैदा होती है और लड़को की तरह व्यवहार करती है तो यह उसका यौन अभिविन्यास (Sexual Orientation) कहा जाएगा । थर्ड जेंडर एक तरह से न्यूट्रल है जो अन्य जेंडर के भीतर नहीं है । इसमें सभी यौनिकताओं का समावेश संभव है । यौनिकता का आशय यहाँ यौन क्रिया और यौन संबन्धों तक सीमित नहीं है बल्कि यौनिकता से अभिप्राय प्रवृतियों और व्यवहारों से है । इनके पैदा होने पर ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि चंद्रमा, मंगल, सूर्य और लग्न से गर्भधारण होता है। जिसमें वीर्य की अधिकता होने के कारण लड़का और रक्त की अधिकता होने के कारण लड़की का जन्म होता है। लेकिन जब गर्भधारण के दौरान रक्त और विर्य दोनों की मात्रा एक समान होती है तो बच्चा ‘किन्नर’ पैदा होता है । ‘थर्ड जेंडर’ से जुडी बहुत सी एसी मान्यतायें और बातें रही है जिनकी जानकारी का अभाव अक्सर एक आम इंसान को रहा शायद इसलिए ‘थर्ड जेंडर’ के जीवन के बेहद प्रेरणास्पद और जानने योग्य पहलुओं से आम समुदाय अक्सर अछूता ही रहा या यूँ कहे वे केवल चर्चा,परिचर्चा तक ही सिमित रहे उसके निष्कर्ष और समाज को मिलने वाली सकारात्मक उर्जा को प्रकाश में उस तरह से नहीं लाया गया जिस तरह से आमतौर पर स्त्री –पुरुषों और एक सामान्य इंसान के जीवन से जुड़े पहलुओं को लाया जाता है । जबकि पूरी दुनियाँ में स्त्री –पुरुष के प्रकार एक ही है उनके गुण और विशेषतायें एक ही हैं ये जरुर है की हर कोई अपने स्वभाव में अलग हो सकता है और उसी वजह से दुनियाँ को उन्हें देखने का द्रष्टिकोण भी अलग –अलग हो किन्तु मानव अधिकार तो सभी के लिए जो इंसान के रूप में जन्में है एक समान है। जीने के लिए जितनी चीजे जरुरी है वे हर इन्सान के प्राथमिक अधिकारों का अहम हिस्सा है किन्तु समाज का ये वर्ग आज भी अपने अधिकारों से वंचित यह समुदाय मानव विभेद का प्रतिक इंसानी अधिकारों से मरहूम आमतौर पर सामान्य जन के हर शुभ कार्य की रस्मों से जुड़ा है किन्तु इनका अपना जीवन शुभकामनाओं से दूर क्यों ? यह विषय बहुत अधिक गहन चिन्तन के साथ -साथ इस बात पर सोचने के लिए भी विवश करता है की समाज का ये वर्ग अपने लिए एक बेहतर जिन्दगी तो बहुत दूर अपने अधिकारों के लिए भी अपनी लड़ाई लड़ते है ।
जबकि समाज का ये वर्ग आज से नहीं आदिकाल से बल्कि महाभारत काल से एक प्रेरणा स्त्रोत के रूप में सामने आया है महाभारत में शिखंडी की कथा प्रसिद्ध है वह एक किन्नर थे उन्हें अबध्य माना जाता था । पौराणिक आख्यानों में रामायण, महाभारत और कौटिल्य के अर्थशास्त्र, कामसूत्रम् उसके बाद मुग़ल इतिहास में बहुत सी घटनाएँ मौजूद हैं । पांडवों को अपने बनवास का आखिरी वर्ष अज्ञात वास से काटना था सब छुप सकते थे पर धनुर्धर अर्जुन ,पूरे आर्यावर्त में प्रसिद्ध था उसने ब्रह्नल्ला के नाम को धारण कर किन्नर के रूप में राजा विराट की नृत्य शाला में राजा की पुत्री उत्तरा को नृत्य सिखा कर सुरक्षा से बिताये | इसके अतिरिक्त यह भी मान्यता रही हैं की इनकी दुआएं किसी भी व्यक्ति के बुरे समय को दूर कर सकती है । मुगल काल में किन्नरों की पूरी फौज मुगल हरम की रखवाली करते थी | कई किन्नर राजनीति में भी थे सुल्तान अलाउद्दीन का सलाहकार मलिक काफूर किन्नर था वह सुल्तान का दाया हाथ था | अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद वह किंग मेकर भी बना | किन्तु आज ये जानते हुए भी की इंसानी अधिकारों से मरहूम यह समुदाय कई रस्मों और शुभ कार्यों से जुड़ा है इनके लिए जीना एक अभिशाप बन गया है और मरना भी सुकून से बहुत दूर हैं । एसी मान्यता रही है की किन्नर की म्रत्यु किसी भी समय हो किन्तु उनकी शव यात्रा हमेशा रात को ही निकाली जाती थी इतना ही नहीं शव निकालने से पहले शव को जूते- चप्पलों से पीटा जाता है और पूरा समुदाय एक सप्ताह तक भूखा रहता है वास्तविकता में अगर इस द्रश्य को देख लिया जाय तो कठोर से कठोर इन्सान भी रो पड़े किन्तु उनके लिए ये मरने की रस्म भी है और पूरे जीवन पर सवाल उठाता एक कदम भी आखिर किसी का जीना इतना अभिशप्त कैसे हो सकता है? उनके साथ सहानुभूति के अभाव में कहीं न कहीं आज वे आपराधिक मामलों में स्वयं को लिप्त कर रहें है । इसलिए सामाजिक भीड़ में वे अलग- थलग ही हैं जहाँ वे जाते है लोग उनसे कतराकर निकल जाते है किन्तु शादी ब्याह बच्चे के जन्मोत्सव पर दुआए देने भर के लिए वे जरुरी होते है । लोगो से जो वो शगुन मांगते है बस वही उनकी दुआओं की कीमत है। .वे दुआएं जो हर इंसान के लिए बेहद अनमोल होती है हालाँकि न्यायलय द्वारा बहुत बड़ा और अहम फैसला लिया गया है इस समुदाय के प्रति की यह पढ़ लिख कर सामान्य जीवन जी सकेंगे। बस आवश्यकता है समाज के संवेदनशील व्यवहार की और इन्हें भी अपने भीतर अपनी कार्य शैली और सोच में बदलाव को महसूस कर स्वयं को आमजन के जीवनानुरूप स्थापित करने की । जीवन के किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए इंसानी अधिकारों का उपयोग सही तरीके से होना आवश्यक है । समाज को इस समुदाय के प्रति अपना नजरियाँ सहानुभूतिपूर्ण होने के साथ- साथ सहयोगी और संवेदन शील भी बनाने की आवश्यकता है । साहित्य में भी ‘थर्ड जेंडर’ को विश्लेषित करते हुए बहुत कुछ लिखा गया जिनमें उनकी जैविक संरचना से लेकर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक संरचना के भिन्न-भिन्न पहलुओं को सामने लाने का प्रयास किया गया उपन्यास साहित्य में ‘थर्ड जेंडर’ समुदाय को केन्द्रित करते हुए चार उपन्यास यमदीप, तीसरी ताली, किन्नर कथा और गुलाम मंडी थर्ड जेंडर पर केन्द्रित प्रचलित उपन्यास रहें है । और आगे भी अन्तर्द्रष्टि से शोध कर इन पर लिखने की आवश्यकता है जिससे समाज इनके बारे में अधिक से अधिक जान सके । हालाँकि थर्ड जेंडर समुदाय धीरे-धीरे समाज की मुख्यधारा में अपनी जगह बना रहा है किन्तु उन्हें उसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है तरह तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है । क़ानूनी रूप से भले ही अधिकार मिल गए हो किन्तु समाज की मानसिकता से इस वर्ग का संघर्ष अभी जारी है ।
सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड जेंडर को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा मानते हुए सरकारी भर्तियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देने के निर्देश दिये है । संविधान की धारा १४,१६ और २१ का हवाला देते हुए थर्ड जेंडर को सामान्य नागरिक अधिकार शिक्षा रोजगार और सामाजिक स्वीकार्यता पर समान अधिकार देने के निर्देश जारी किये गए है इसी के साथ राज्य सरकार ने तृतीय लिंक समुदाय को शासन की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए सभी जिलों में जिला स्तरीय समितियों के गठन के निर्देश जारी किये है । समय के परिवर्तन के साथ क़ानूनी रूप से विकास हो रहा है किन्तु सामाजिक रूप से इंसानियत से बेहद परे आज भी ये समुदाय अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है । समाज ने इंसानियत के जिस तकाजे पर इस समुदाय को मनुष्यता के सामाजिक पैमाने से बाहर किया । वही मनुष्यता मुख्य धारा से अधिक इनमें दिखती है । इतिहास और पौराणिक आख्यानों में कहीं भी इन्हें अनुपयोगी नहीं माना गया है, न ही पुनरउत्पादन की प्रक्रिया में इनकी निष्क्रियता को इनके मनुष्य होने पर ही चिंहित किया गया है, जैसा कि समाज में होता है । समाज की सोच में शोध चिन्तन की महती आवश्यकता है क्योकि सामाजिक धारणाओं और पौराणिक कथाओं से भिन्न साहित्य में इनकी एक अलग छवि गढ़ी गई है । इस छवि की पड़ताल अनेक संदर्भों के साथ करने की जरुरत है । साथ ही साहित्य की अंतर्दृष्टि ‘थर्ड जेंडर’ को कैसे देखती है यह समझना व देखना भी आवश्यक होगा । निः संदेह ‘थर्ड जेंडर’ समुदाय के प्रति सामाजिक द्रष्टिकोण जैसे विषयों पर पुनरावलोकन एवं गहन अध्ययन की आवश्यकता है । बहुत काम करना होगा इस विषय पर हर संदर्भ में जाकर खोजना समझना होगा । केवल अवलोकन द्रष्टि या उपरी सतह से सिर्फ उनके उपनामों को परिभाषा ही मिल पायेगी। वास्तविक सम्मान नहीं । किसी भी रूप में इंसान का होना अपने आप में एक जेंडर है उसे हीन भावना से देखना या फिर उसके प्रति अपनी संवेदनशीलता को छद्म कर देना मानवता और इंसानियत दोनों के लिए अभिशाप है । शायद ‘इंसान होने के नाते इन्सान का फर्ज इंसानियत का सम्मान और सुरक्षा होना चाहिए, न की लिंग भेद जैसी ओछेपन से ग्रसित मानसिकता से उनका आंकलन विश्लेष्ण कर समाज को प्रदूषित करना’। मनुष्य के रूप में इन्सान होने के नाते ‘थर्ड जेंडर’ से संबोधित इस समुदाय के प्रति ‘सामाजिक दुर्व्यवहार’ को पनपने से रोकना इंसानियत के लिए एक शुभ कार्य की पहल होगी ।
उज्जैन में आयोजित वर्ष २०१६ का महाकुम्भ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है की ‘थर्ड जेंडर’ के प्रति तुलनात्मक द्रष्टि से समाज में बड़ा परिवर्तन आया है ये समुदाय धीरे-धीरे समाज की मुख्यधारा में अपनी जगह बना रहा है। महाकुम्भ में प्रथम बार ‘थर्ड जेंडर’ संप्रदाय का एक अलग स्थान निर्धारित कर लाखों श्रध्दालुओं ने उनसे आशीर्वाद एवं दुआएं लेकर समाज के इस वर्ग पर पुनरवलोकन कर अंतर्दृष्टि डालने की पहल कर दी है साथ ही उनसे जुड़े विषयों पर आधारित सामाजिक अवधारणा पर चिन्तन और शोध करने हेतु विवश भी किया है ।
नाम –शोभा जैन
स्थान –‘शुभाशीष’, सर्वसम्पन्न नगर,इंदौर
कार्य क्षेत्र –आलेख, कहानी, कविता,शोध पत्र लेखन में संक्रिय मुद्रित एवं अंतर्जाल पत्रिकाओं में प्रकाशन स्वतंत्र लेखन पी-एच.डी.रिसर्च स्कालर –‘हिंदी साहित्य’
संपर्क –mob .-9977744555
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