तेलुगु लघुकथा ‘हस्ताक्षर’

हस्ताक्षर  (दस्तकत)

लेखिका- जाजुला गौरी

 अनुवादक- के. कांचन

          सुबह के समय नौ बजे, लोतुकुंटा प्राथमिक पाठशाला में टन…टन घंटी बजी l घंटी की आवाज सुनते ही उस स्कूल के मैदान में खेल रहे बच्चे आकर अपनी-अपनी कक्षाओं के अनुसार क्रम में खड़े हो गएँ l प्रार्थना पाठ होते ही हमेशा की तरह सब बच्चे अपनी-अपनी कक्षाओं में क्रम से जाकर बैठ गएँ l उपस्थिति-रजिस्टर लेकर सब अध्यापक अपनी-अपनी कक्षाओं की ओर जा रहे थे, तभी चौथी और पाँचवी कक्षा के अध्यापकों को थोड़ी देर रूकने के लिए हेडमास्टर रंगाराव ने कहा l

       फिर अलमारी में से फॉर्म निकाल कर देते हुए हेडमास्टर ने कहा “यह सोशल वेल्फ़र ऑफिस से हमारे स्कूल को आए हुए हैं l तुम्हारी कक्षा में जितने भी एस.सी. एस.टी. के बच्चे हैं उन्हें यह फार्म दे कर एक सप्ताह के भीतर भर कर ले आने के लिए कह देना, हमें इसे दस दिन के भीतर प्रस्तुत (सबमिट) करना होगा”  l

         अध्यापक लक्ष्मण राव और अन्नम्मा अध्यापक दोनों रजिस्टरों के साथ फार्म भी लेकर अपनी-अपनी कक्षाओं में चले गयें l

        कक्षा में हाजरी लेना और पाठ पढ़ना भी ख़त्म हो गया l उसके बाद अचानक ही हेडमास्टर ने दिए हुए फार्म की ओर ध्यान गया और अध्यापक लक्ष्मण राव विद्यार्थियों की तरफ देखते हुए – “अरे.. तुम में से कोई एस.सी., एस.टी. जाति का हो तो हाथ उठाओ” कहते ही बच्चे सब एक दूसरे के चेहरे देखने लगे l इस तरह कहने से बच्चों को समझ में नहीं आया होगा कहते हुए “तुम में से निम्न जाति वाले कोई हैं ?” फिर से प्रश्न किया l तब भी बच्चे एक दूसरे के चेहरे देख रहे थे l

        एक लडके ने पूछा “निम्न जातियों  का क्या मतलब है गुरु जी ?”

       “निम्न जाति का मतलब, जैसे कि चमार जाति, महार जति… आदि । इन जातियों के कोई है क्या ?” उसके कही हुई बात में से बच्चों को एक अक्षर भी न समझ आने से बच्चों का चेहरा फीका पड़ गया l “अरे ! मूर्ख.. बच्चों, तुम्हारी जात क्या है ? नहीं जानते हो क्या ?” आश्चर्य से पुछा l बच्चों ने “उहूँ” कहते हुए सिर हिलाया l उतने में एक लड़की ने पूछा कि “असल में जाति का मतलब क्या है गुरू जी ? ”

     इस प्रश्न से गुरु लक्ष्मण राव का छहरा एक दम फीका पड़ गया l उन्हें क्या कहूँ कुछ समझ में न आने से धीरे से चेहरा छुपाते हुए स्कॉलरशिप फार्म सब विद्यार्थियों को देकर कहा कि “इसे तुम्हारे माता-पिता को बताकर, उनसे भरवाकर ले आओंगे  तो तुम्हें कुछ दिनों बाद स्कॉलरशिप मिलेगी l अभी आप लोग चौथी कक्षा के विध्यार्थी हैं  न ! इसके लिए जितने भी लोग योग्य होंगे, उनमें से एक-एक को चालीस-चालीस रुपये मिलेंगे” l 

       रुपये मिलेंगे कहते ही बच्चों को आशा होने लगी और फार्म की ओर देखने लगे l लेकिन उन्हें अपनी जाति कौन-सी है, इसका पता न होने से वे नाराज़ हो गए l

       उस दिन ही लगभग दोपहर के भोजन के बाद लक्ष्मणराव हेडमास्टर के पास जाकर कक्षा की परिस्थिति के बारे में बताया l उसी समय वहाँ पर अन्नम्मा टीचर को भी आते हुए देखकर हेडमास्टर ने हँसते हुए….पूछा l

      “अन्नम्मा जी तुम्हारी परिस्थिति क्या है ? ”               

  “केवल दोनों ने ही लिया है सर”  अन्नम्मा ने कहा । हेडमास्टर क्यों हँस रहें होंगे ? अन्नम्मा को समझ नहीं आया ।

हेडमास्टर ने कहा “आपके बच्चे तो थोड़े ठीक ही है, लेकिन लक्ष्मणराव जी की परिस्थिति तो और भी खराब है” कहते हुए लक्ष्मणराव की कक्षा बीती हुई घटना के बारे में बताया l

     “मेरी कक्षा में भी लगभग परिस्थिति वैसी ही थी, सर l फिर भी वो छोटे बच्चे हैं, उन्हें क्या पता होगा जाति के बारे में, सर l चार बच्चों के साथ मिलजुलकर पढ़ाई और खेलने वाले नादान बच्चों को हम अभी से ही जाति के नाम से विभाजित कर रहे हैं”  अन्नम्मा ने कहा l

      “सही है टीचर जी, आपकी बातों से मैं सहमत हूँ l लेकिन यह ऊपर से दिया गया आदेश है, हमारी जिम्मेदारी तो हमें निभानी ही पड़ेगी” कहते हुए एडमिशन बुक निकालकर उन्हें दे दिया l 

       “इसमें विद्यार्थियों का पूरा पता लिखा हुआ है l तुम्हारे कक्षा में निम्न जाति के बच्चों को इसके द्वारा ही पहचाना जा सकता है l यह काम जल्दी-जल्दी निपटाकर आज शाम तक इसके लिए जो भी योग्य है उन्हें यह फार्म दे देना l इसे वापस लाकर देने में उन्हें एक सप्ताह का समय तो लगेगा ही l उस फार्म को हमें दस दिन के अंदर सबमिट करना होगा, जल्दी उन्हें दे  दो” l कहते हुए हडमास्टर जल्दबाजी करने लगा  l

     कक्षाओं के अनुसार सब विद्यार्थियों के नाम लिखकर ले जाने तक अंतिम बेल बजने में कुछ  ही मिनट शेष थे, इस भीतर ही निम्न जाति के विद्यार्थियों को फार्म दे दिये गये l

    स्कॉलरशिप फॉर्म प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में चौथी कक्षा का रामुडु भी था l फॉर्म हाथ में आते ही उसका चेहरा चमक उठा l उस फॉर्म को ऐसे निहारने लगा, जैसे उसके हाथ में चालीस रुपये आ गये हो …

   एक बार में खुशी से उसकी सांसें भर आई l फॉर्म को किताब में रखकर वह बहुत उत्साह से उछल–कूद करते हुए घर की ओर दौड़ा  l रामुडु के घर पहुँचने पर वहाँर कोई नहीं था l मजदूरी के लिए  गए माँ-बाप का इंतजार करते-करते वह चबूतरे पर बैठा रहा l अँधेरा होते समय घर आ रहे माँ-बाप को देखकर खुशी से दौड़ते हुए उनके सामने जाकर “माँ आज स्कूल में स्कॉलरशिप फार्म मिला है l इसे भरकर देने पर चालीस रुपये मिलेंगे” सकुचाते हुए उसने कहा l 

     “बेटा, स्कॉलरशिप फॉर्म का मतलब क्या है ?” मल्लम्मा ने अनजाने में पूछा l

     “सो तो, मुझे नहीं पता l यह सब भरकर ले जाने से इसे गुरूजी किसी सरकारी ऑफिस में दे देंगे और उसके बाद हमें रुपये मिल जायेंगे” रामुडु ने कहा l

“हाथ-पैर धोकर, वह फॉर्म देखूंगी, लेकिन तू पहले घर पर तो चल” माँ ने कहा l रामुडु घर जाते ही थैली में से स्कॉलरशिप फॉर्म हाथ में लेकर तैयार है….

        माँ आते ही “यह देखो माँ, यह वहीं कागज़ है, इसे ही स्कॉलरशिप फॉर्म कहते हैं, यह निम्न जाति वाले बच्चों को दिए जाते हैं, हमारे गुरू जी ने पुछा कि तुम्हारी जात कौन सी है, माँ असल में जाति का मतलब क्या है ? भौएं ऊपर उड़ाते हुए माँ से उसने प्रश्न किया l

      “बेटा जाति का मतलब जाति ही होती है l इसमें उच्च-निम्न जाति के लोग होते हैं l जैसे उच्च जाति वालों को उच्च जाति के बच्चे और निम्न जाति वालों को निम्न जाति के बच्चे कहा जाता है, बस l “तो फिर हमारी जात कौन-सी है, सर ने बताया कि निम्न जाति वालों के भी नाम हैं l”   “बेटा तुझे यह भी नहीं पता ? हम चमार जाति के हैं” बेटे के प्रश्न के जवाब में माँ ने कहा l

“मुझे कैसे पता होगा तुमने कभी नहीं बताया और पिताजी ने भी नहीं”  कहते हुए रामुडु  अपना सर खुजाने लगा  l “रुको बेटा पिताजी से पूछती हूँ” यह कहकर मल्लम्मा बाहर बैठे राजय्या के पास वह फॉर्म लेकर पहुँच गई l “अजी सुनते हो ! अपने रामु को स्कूल में आज यह स्कॉलरशिप फॉर्म दिया गया है, यह क्यों दिया है थोडा देखों” पति को फॉर्म देते हुए मल्लम्मा ने कहा l राजय्या ने उस फॉर्म को लेकर एक बार नीचे से ऊपर तक देखा और उसे एक अक्षर भी समझ में नहीं आया, लेकिन वह क्यों दिया गया है यह उसे समझ में आ गया था, सो उसने कहा “हाँ… यह क्या है न, पिछले साल लक्ष्मण भैया के बेटे को भी यह फार्म दिया गया था l इसके ऊपर अपनी जाति और अपना पता लिखना होता है, और इस पर हमें हस्ताक्षर करने होते हैं l वहाँ तक तो ठीक है लेकिन असल मुद्दा वहीं से ही शुरू होता है l हम चमार जाति के हैं या नहीं यह जानने के लिए गवाह के रूप में एक ठाकुर के हस्ताक्षर की जरूरत होती है, सभी जगह हमारी जात तो चमार ही रहेगी, लेकिन यहाँ पर तो हमें हमारी ‘चमार जाति’ ही है, यह साबित करने के लिए उच्च जाति वालों के हस्ताक्षर चाहिए l असल में उन्हें कैसे पता चलेगा कि हम इस जाती के  हैं ? यह क्या हमारे चेहरे पर लिखा रहेगा? वहाँ जाने के बाद तो पहले तुम किस जाति के हो पूछेंगे l”

     ‘चमार जाति’ के कहने के लिए तुम्हारें पास क्या गवाह है पूछेंगे, यह सब होने के बावजूद रुपये देने पर भी हस्ताक्षर नहीं करेंगे l वह हस्ताक्षर लेने के लिए घूम-घूम कर थक जायेंगे, यह सब हम नहीं जानते हैं, इसलिए तो हमें पढ़ाई करनी चाहिए l ऐसी नोबत तो अभी तक नहीं आई है, लेकिन हमारे बच्चों की जिंदगी में तो रुपये देकर खरीदी गयी हस्ताक्षर ही एक गवाह है l इसी के लिए तो लक्ष्मण भैय्या घूम-घूम कर परेशान हो गए थे, समझ में आया!” यह कहते हुए राजय्या ने पूरा इतिहास बता दिया l थोड़ी देर रुककर, सिर को खुजलाते हुए “यह सब बेकार है लेकिन असल में इन कागजों पर किस-किस के हस्ताक्षर चाहिए, यह बताओ ना” मल्लम्मा ने कहा l

     “उसी के बारे में तो बता रहा हूँ, कोई डॉक्टर, इंजीनियर और कोई दफ्तर में काम करने वाला कोई बड़ा ऑफिसर की इस पर हस्ताक्षर चाहिए l वे भी सरकारी नौकरी करने वाले ही चाहिए l यह सब तो हम से नहीं होगा, रख दो वहाँ, हाथ में फार्म लेकर भी नहीं लिये जैसे गुस्से से कहा l पिता के इस तरह कहते ही रामुडु का मन सिकुड़ने लगा और उसे ऐसा लगा जैसे कि अचानक चालीस रुपये छिन कर हवा में उड़ गए या उड़ा दिये गए हो l

    “यह क्या समझाने के लिए कह रही थी, पर क्यों तुम ऐसे इसकी कोई जरूरत ही नहीं है, जैसे बात करे रहे हो ?” कहते हुए गुस्से से फॉर्म छीनकर मल्लम्मा घर में चली गयी l रामुडु अपनी माँ के पीछे-पीछे ही जाते हुए आशा भरे स्वर में कहा – “माँ, कुछ भी करके इस फॉर्म पर हस्ताक्षर करवाओ, हमें रुपयें मिलेंगे  l”

      “चुप हो जा… अभी ही आयी हूँ, और अभी के अभी लाकर मेरे मुँह पर फेक रहा है, पूरा काम जहाँ का तहाँ पड़ा हुआ है, तुम्हारे पिता से तो कुछ होता ही नहीं, थोड़ी देर रुक नहीं सकता, कहाँ जाने वाले हैं ये पैसे, कहीं भाग जा रहे हैं क्या ?” यह कहते हुए मल्लम्मा ने पति का गुस्सा बेटे पर उतारा l यह बातें सुनकर रामुडु बहुत नाराज हो गया l अपना चेहरा फुलाके घर में एक कोने में बैठा रह गया l रसोई होते ही तीनों के लिए थालियों में खाना परोसकर भोजन करने के लिए उसने रामुडु और राजय्या को आवाज दी l “मैं नहीं आऊँगा, और ना ही खाना खाऊँगा ” कहते हुए रामुडु रूठ कर बैठ गया था  l राजय्या भोजन की थाली के सामने बैठकर “क्या है, ये तेरी जिद्दी हरकतें, खाले नहीं खाएगा तो तू ही दुबला हो जायेगा जा” कहते हुए धमकाया l

     “क्या है… चुप नहीं बैठ सकते, वह भूखे पेट बैठा हुआ है और ऊपर से और भी ज्यादा नाराज़ करने की बातें कर रहे हो l तुम तो उसे भोजन करने के लिए कहते तो हो नहीं ” कहते हुए थाली में भोजन ले कर बेटे को खिलाने लगी, मल्लम्मा l रामुडु बहुत देर तक मैं खाना नहीं खाउंगा कहते हुए जिद्द कर रहा था l बेटे के सिर पर हाथ सँवारते हुए माँ “बेटा लक्ष्मण भैया के पास जायेंगे, अब यह खाना खालो, थोड़ी देर बाद चलते हैं” यह कहकर बेटे को समझाते हुए उसे खाना खिला दी और बर्तन धो कर घर में रखकर घने अंधेरें में लक्ष्मण भैय्या के घर रामुडु को लेकर चली गई l देहली पर खड़े होकर “लक्ष्मण भैया….ओ….लक्ष्मण भैया…” कहते हुए पुकारने लगी l

     बुलावा सुनकर लक्ष्मण घर से बाहर आते हुए  मल्लम्मा को देखा l पास आकर “कैसी हो बहन , ठीक हो ! क्या बात है, क्यों  इतनी रात को आई हो ?” प्रश्न किया l

     “कुछ नहीं भैया, रामु के स्कूल में यह फॉर्म दिया गया है, इस फार्म का क्या करना है थोडा बताओ भैया!”  बिनती भरे स्वर में पूछने लगी l

     पिछले साल यह फॉर्म हमारे रवि को भी दिया गया था, लेकिन बहुत दिक्कत हुई इस पर हस्ताक्षर करवाने में, सरकारी आस्पताल को छः दिन आते-जाते रहा लेकिन हस्ताक्षर नहीं हो पाये l आखिर बीस रुपये लेकर दूसरे डॉकटर ने हस्ताक्षर कर दिये थे, लेकिन वह डॉक्टर अब नहीं है”  उसने विस्तार से बताया l

      “ठीक है, कोई बात नहीं, वह डॉक्टर नहीं तो नहीं, सरकारी अस्पताल को जाऊँगी” यह कहते हुए मल्लम्मा घर चली गई l सुबह नौ बजे के समय मजदूरी को न जा कर वह  अपने बेटे को साथ लेकर सरकारी अस्पताल पहुँच गई l वह वहाँ जाते ही इलाज करवाने आये रोगियों की बहुत लम्बी क़तार थी l अंदर जाकर हस्ताक्षर लेना उसके बस की बात नहीं थी l कितनी देर तक खड़े होने पर भी रोगियों की संख्या घट  ही नहीं रही थी, बढ़ती ही जा रही थी l आखिर देख-देखकर निराश होकर वापस घर पहुँच गई l

      दूसरे दिन भी मजदूरी को न जा कर, किसी भी तरह आज हस्ताक्षर लेना ही होगा यह सोंचकर बेटे को लेकर जल्दी-जल्दी अस्पताल चली गई l नौ बजे डॉक्टर आते ही प्यून एक एक को अंदर भेज रहा था l प्यून उसकी ओर आते ही उसके हाथ पैर कांपने लगे फिर भी हिम्मत करके वह अंदर चली गई l

     माँ, बेटे को देखकर डॉक्टर ने पुछा कि “क्या हुआ खाँसी किसको है ? तुम्हारी समस्या क्या है ?”

     मल्लम्मा थोड़ी लड़खड़ाते हुए “बीमारी कुछ भी नहीं है, माँ” कहकर सांस ली l

     डॉक्टर ने नीचे से ऊपर की ओर देखकर खींजते हुए कहा “बीमारी नहीं है तो फिर क्यों आये हो यहाँ ?”

     बेटे को दिखाते हुए “इसे स्कूल में यह फॉर्म दिया है, और सुना है कि इस से पैसे मिलने वाले हैं, इसके ऊपर हस्ताक्षर चाहिए, हस्ताक्षर कर दो अम्मा,” फार्म दिखाते हुए बड़ी विनम्रता से विनती करने लगी मल्लम्मा  l

     फार्म देखते ही डॉक्टर गुस्से से “क्या है अम्मा ? क्या हम लोग यहाँ पर रोगियों को देखने आये हैं या हस्ताक्षर करने के लिए ही हैं ! क्यों समय बर्बाद करते हो” कहते हुए अटेंडर को बुलाकर “क्या बाबु, दरवाजे के पास क्या कर रहे हो ? ऐसे लोगों को भेजते हो क्या ? इन्हें पहले बाहर निकाल दो” यह कहकर चिल्लाने लगी l

   उस आवाज़ को सुनते ही अटेंडर जल्दी-जल्दी आकर मल्लम्मा का पल्लू पकड़कर और दूसरे हाथ से रामुडु का कॉलर पकड़कर, “खाना हज़म नहीं हो रहा है, ऐसी हरकते करते हो, ‘तेरी माँ की’ यहाँ से निकलो” कहते हुए तुरंत ही बाहर खींचकर ले आया l

    मल्लम्मा इस बर्ताव को नज़र अंदाज़ कर रामुडु को दिखाते हुए “ओ डॉक्टर अम्मा, तुम्हें पूण्य प्राप्त होगा जरा हस्ताक्षर कर दो” यह कहते हुए विनती करते ही रहीं l लेकिन वहाँ, माँ और बेटे के परिस्तिथि को कोई  समझने को तैयार नहीं था l

    रामुडु यह सब देख डर के मारे माँ को पकड़कर जोर-जोर से रोने लगा l लेकिन वह उसके बेटे को समझने की स्थिति में नहीं थी l हस्ताक्षर न  होने से निराश होकर वहीं पेड़ के नीचे ही बैठी रह गई l परंतु मन ही मन सोंच रही थी कि कुछ भी करके उस फार्म पर हस्ताक्षर करवाना ही होगा, यह मन में ठान कर, अस्पताल की ओर देखते वैसे ही बैठ गई l

     बारह बज गए, सब लोग जहाँ के वहाँ चले गए l लेकिन मल्लम्मा को वहाँ से न हिलते देख उस अस्पताल का कंपौन्डर पास आकार “सुबह से देख रहा हूँ, यहीं बैठी हो, क्या बात   है ? ” पूछते हुए पता किया l

    आँखों में आंसू भरे हुए मल्लम्मा की परिस्थिति को देखकर कंपौन्डर ने उस पर दया आकर वह फार्म लेकर “ठीक है इस पर डॉक्टर जी से हस्ताक्षर करवाऊँगा, लेकिन तीस रुपये चाहिए, पैसे दे दो हस्ताक्षर करवाउंगा” कहकर डिमान्ड करने लगा l

     “हम लोग मजदूरी करके जीने वाले हैं सार, तीस रुपये कहाँ से आएंगे, इसके वजह से कल और आज मेरी मजदूरी भी चली गई, हर दिन चालीस रुपये मिलते थे, बच्चे की स्कूल भी चली गई” धीरे से हाथ फिराते हुए मल्लम्मा ने कहा l

    “यह सब मुझे नहीं पता, हस्ताक्षर चाहिए तो पैसे भी चाहिए, यूँ ही कोई हस्ताक्षर नहीं करेगा” उसने कहा l

    रामुडु उन बातों को सुनते ही घबरा गया, हस्ताक्षर हो पाएँगे भी या नहीं सोचकर विचलित होने लगा,  उसने अपनी माँ से कहा – “माँ सार जितने पैसे मांग रहें हैं, उतने दे सकती हो न”  l

    “मेरे बेटे का तो चेहरा देखकर थोड़ी सी कृपा कीजिए सार, तीस रुपये कहने से मुझसे नहीं होगा सार… बीस रुपये दूंगी सार बेटे को दिखाते हुए कहा” कंपौन्डर रामुडु की ओर देखकर “हाँ, ठीक है..ठीक है, किसी को भी न पता चले जैसा इस कागज़ में मोड़कर रख दो, चोर की तरह इधर-उधर देखते हुए कहा” l

    मल्लम्मा ने अपनी कमर में कसकर रखी छोटी सी थैली में से पूरा ढूंड-ढूंडकर बीस रुपये निकालकर उस कागज में रख दिये l फटक से वह फार्म लेकर कंपौन्डर “ठीक है, लेकिन बच्चे का नाम तेरे पति का नाम और तुम्हारा पता बताओ” कहते हुए जेब से कागज़ पेन निकालकर मल्लम्मा से बताया गया पूरा पता लिख लिया l कागज़ को जेब में रखते हुए “कल इसी टाइम को आ जाना ! सुबह आओगी तो यह काम नहीं होगा l सुबह सब तुम्हें पहचानेंगे l पहले ही आज बहुत बड़ा झगड़ा हुआ है ।” कहकर चेतावनी दी l

    मल्लम्मा दीनता से उसकी ओर देखते हुए “ठीक है सार, तब ही आउंगी l कुछ भी करके इस पर हस्ताक्षर करवा देना, तुम्हें पुण्य मिलेगा” कहकर बेटे को लेकर सोंचते हुए घर की ओर बढ़ गई l

    उस दीन रात में मल्लम्मा के साथ पति झगडा करने लगा “ बेवकूफ़, दो दिन से देख रहा हूँ कहाँ गई थी, तू ? काम को भी नहीं आ रही हो और उसे भी स्कूल जाने नहीं दे रही हो ? वो सब हमारे से नहीं होगा, इतना समझाने पर भी तुम्हें मेरी बात को समझ मे नहीं रही है, देखो अगर कल से काम पर नहीं आवोगी तो चुप नहीं बैठूँगा…हाँ…” कहते हुए उसके ऊपर गुस्से से आँखे फाड़ने लगा l

   “क्यों जी, इस तरह बातें क्यों कर रहे हो ! क्या मैं यूँ ही घर पर खाली हूँ…या गाँव में घूम रही हूँ…तुम भी नहीं करते और मुझे भी नहीं करने देते हो, जो कुछ कर रही हूँ, अपने बेटे के लिए ही तो कर रही हूँ ना, मैंने कुछ गलत काम किया है क्या ? पुछो ! आज भगवान की तरह कंपौन्डर सार मिले थे, और यह काम कल हो जायेगा,  उसके बाद यह स्कूल में देगा तो पूरा काम हो गया जैसा ही समझो, फिर अपने बेटे को पैसे मिलेंगे” किन्तु, उसके पास से कंपौन्डर ने बीस रुपये लिए थे, यह बात उसने अपने पति को नहीं बताया l

    तीसरें दिन भी मल्लम्मा मजदूरी को नहीं गई l ग्यारह बजे का समय आस्पताल जाकर गेट के बाहर  धूप  में खड़ी हो गई l आस्पताल से सभी बाहर जाने के बाद कंपौडर का आना देखकर माँ और बेटा जल्दी-जल्दी भागके उसके सामने गए l उन्हें देखकर कंपौन्डर बगल में जाकर “इस तरह सामने भागते हुए आने की बजाय उधर बाजु में खड़े हो सकते हो ना ? मैं ही आकर दे दूँगा” कहते हुए जेब में से फार्म निकालकर छिडकते हुए दे दिया l उसे मल्लम्मा कितने प्यार से लेकर “भगवान तुम्हारा भला करे ! भगवन तुम्हें हमेशा सुखी रखे ! कहते हुए हाथ जोड़कर प्रणाम कर, बेटे को लेकर घर पहुँच गई l

     चौथे दिन सुबह पति-पत्नी मजदूरी करने गए, और बेटा स्कूल चला गया l स्कूल जाते समय लम्बा रास्ता काटते हुए तीन दिन से घटी घटनाएँ रामुडु के आँखों के सामने       साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी l तीन दिन के बाद स्कूल को आनेवाले रामुडु को देखकर स्कूल को क्यों नहीं आया यह पूछते हुए, दो थप्पड़ मारकर दिवार के पास मुर्गी की तरह बिठा दिया, लक्ष्मण राव सर ने l तीन दिन से की गई मेहनत के सामने, अपने अध्यापक द्वारा दी गई यह सजा उसे बहुत छोटी लगी थी l

      दूसरी बेल बजने को थोडा समय था उससे पहले लक्ष्मण राव अध्यापक ने विद्यार्थियों से पूछा कि “स्कॉलरशिप फार्म भरकर लाये हो क्या ?”  नहीं लेकर आये हैं , ऐसा बच्चों ने सिर हिलाते हुए कहा  l

    “आज भी कोई लेकर नहीं आए ? और तीन दिन ही बाकि है जल्दी लेकर आ जाना देर करोगे तो परेशानी होगी” कहते हुए अध्यापक बेल होते ही रजिस्टर साथ लेकर क्लॉस के बाहर जाने लगा l

    लक्ष्मण राव सर बाहर जाते ही रामुडु अपनी थैली में से स्कॉलरशिप का फॉर्म लेकर “सर…सर…” कहते हुए दौड़ कर अध्यापक के पास पहुँचा l 

    पीछे से ‘सर’ कहने की आवाज़ आते ही पीछे मुड़ कर लक्ष्मण राव ने देखा l पीछे मुड़ते ही सामने स्कॉलरशिप फॉर्म के साथ रामुडु था । उसने “स्कालरशिप फार्म” दिखाया l

    रामुडु के पास से फॉर्म लेते हुए “इससे पहले पूछा था न, तब क्यों नहीं दिया ?” कहने पर रामुडु ने कहा –

    “मुझे मुर्गी बिठाया था न सार ! इसलिए नहीं दिया” 

     लक्ष्मण राव सर रामुडु के भुजाओं पर हाथ रखकर शाबाशी देकर हँसते हुए चला गया l रामुडु बहुत खुश हुआ और सर के हाथ रखे हुए भुजाओं को गर्व से देख रहा था l अच्छी पढ़ाई करूँगा और मैं भी बहुत बड़ा सर बनकर हस्ताक्षर करूँगा, इस तरह वह अपने भावी जीवन की सोंच में डूब गया l 

के.कांचन, (पीहेच.डी.शोधार्थी)

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा खैरताबाद, हैदराबाद

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