कठिन दौर ये कैसा आया।
कुदरत ने आतंक मचाया।।
देश में दिखे शोर बहुत है।
सीमाओं पर जोर बहुत है।।

खींचातानी मची हुई है।
रोटी खूँ से सनी हुई है।।
लड़ किस्मत से मरे जा रहे।
जंगल खुद ही जले जा रहे।।

कहीं-कहीं तो जल विप्लव है।
कहीं विषाणु का तांडव है।।
दुश्मन चालें चले जा रहा।
देश हमारा जले जा रहा।।

सब मिलकर के आगे आओ।
खुद ही अपना देश बचाओ।।
कर्तव्यों की जोत जलाओ।
शक्ति आज अपनी दिखलाओ।।
-पंकज मिश्रा