भावनाओं से बिछी
रिश्तों की चादर पर
खामोशी आजकल
पहरा देने लगी है
बेबसी सी रहने लगी है
दिल की जुबां पर
घुटन बैठने लगी है
प्रेम से बंधी डोरी पर
कशमकश रहने लगी है
एक-दूसरे से
दूर जाने की
रिश्तों के टूट जाने की
प्रतिस्पर्धा सी लगने लगी है
आसूंओं में भी
आंखों से बह जाने की
ना जाने इस भीड़ में
क्या पाने की आस
और क्या खोने का गम है