क्षुधा का समर (कविता)

लहू से लथपथ सड़क
चीख रही है
जान हथेली पर रखकर
निराला के कुकुरमुत्ता
काल के गाल में समाए जा रहा
मेरे मुल्क के निजा़म
हे करुणामय प्रधान
दीन दिन मर रहा
यह रंजिश का समर नहीं
यह क्षुधा का समर है।

©सुभाष कुमार कामत