मैंने एक जौहरी से
एक बेशकीमती हार खरीदी
बेचना उसकी
नियति थी
खरीदना मेरा
अन्तःकरण से उपजी हुई
सुनहरे स्वप्न सरिखा
पाया हुआ रत्न
जो अब हकीकत है
सच कहता है
भावुक पागल मन
ह्रदय में धारण करने वाली
अपनी वो
ह्रदय स्परशी
जिसकी अब कोई किमत नहीं रह गई
कारण
सब कुछ लुटा कर पाने वाले
इस रंक के
गले में जो लिपट गई
खुश होने का
अब कोई कारण नहीं बनता
मैं राजा
समझ भी लु तो
राजकुमारी
अब अपने को रानी कहाँ मानेगी
जौहरी के दुकान की
वो धातु ही है
भाव की कालिख मे
पली वो
कठपुतली मे
भावना कहाँ है
झुठी वो कहावत है
रानी रुठेगी तो
अपना सुहाग लुटेगी ।।
8789054584