शब्दो को साथ मिला कर ,
भावो को खूब जगा कर
मालों मे सबको एक सजा कर ,
बनते है करुणा, दया, प्रेम,रौंद,दुःख-शोक, के माले जिसको कहते है पद्य की भाषा
भीतर से जब टूटा हो मन,
खुशियों से जब भरा हो तन
या जब अपनो से रूठा हो मुख,
तब कहते है शब्दो के आड़े,
तब कविता ही शखा हमारे
जब साशें हो तुंग शिखर पर,
अधरे हो कम्पन के मारे,
प्रेमी से कुछ बोल न पाए,
भावो को जब दिखा न पाए
जब लब्जो हो खुद मे उलजाये,
अपनी बात किसी से बोल न पाए,
तब कलमो को मित्र बना कर भावो के शब्द सजाकर,
कविता को रूप बनाकर कहते है अपनी बातें
सौंदर्य की अनुभूति हो या करुणा की आहुति
पन्नो पर गढ़ते है अपनी मन की बीती
बैरी पर जब क्रोध दिखाए या अपनो पर प्यार लुटाए
सबको छन्दों के सहारे, कहते है रस के द्वारे
कविता, छंद, काव्य, रस , दोहा , मुक्तक सब सुसज्जित हैं कहने को अंतर मन की वाणी।
जीतने भी श्रेष्ठ एवम विद्वान जन है , सब से आग्रह है अपनी अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।