प्रवास

जैसे चलती यह पुरवाई,

मै तो बस ऐसे ही चला था,

जैसे चलती धारा नदी की,

मै तो बस ऐसे ही चला था  I

ना कुछ पा ना ना कुछ खो ना,

सुख-दुःख की कोई तमा नही थी

मेरी कोई मंझील नही थी

मै तो बस ऐसे ही चला था I

राहों मे तुम मिल जाओगे

ऐसी कोई आस नही थी

यूं ही अकेला अपनी धून मे

मै तो बस ऐसे ही चला था I

मार्ग ही मंझील बन जाना

सपना जीवन, जीवन सपना

जा कहीं आना, ना कही जाना

मै तो बस ऐसे ही चला था I

-जीतेन्द्र भारती