आह निकली है तो दूर तलक जाएगी ,
आसमां को चीर कर ख़ुदा तक जाएगी ।
अरे इंसा ! कर ले जी भरकर मनमानी ,
तेरी कारगुजारी उसकी नज़र में आएगी ।
औरतों और बेजुबानों पर कर रहा ज़ुल्म ,
इन्ही की सदा उसके कानो से टकराएगी ।
जितना चाहे भरले पैमाना जूल्म-गुनाहों का,
देखते है ये नाफ़रमानियाँ तुझे कहाँ डुबाती ।
तेरे ज़ुल्मो से घायल धरती और कायनात भी ,
रो रो कर यह अपना सारा उसे हाल बताएगी ।
वो भी तो देख रहा है रोज़ तेरे ज़ुल्म की इंतेहा ,
कभी न कभी ये सदाएं उसे जोश दिलाएगी ।
छिन रखा तूने जिनसे जीने का हक़ औ सुकून,
ये अश्क और ये आहें तुझे भी चैन न लेने देंगी,
कौन है तू !जो सारे जहां का शहँशाह बन बैठा है?,
कयामत की तेज़ नज़र तेरी औकात दिखा देगी ।
कभी तो रहम करेगा इलाही ‘अनु’ को है यक़ीन ,
यह गमगीन आहें जब उसके दर से टकराएँगी ।