जिंदगी बड़ी या भूख,
यह आज जाना हमनें,
इन शहरों की चकाचौंध को,
खूब पहचाना हमनें।
आए थे कई सपने लेकर,
हुए कुछ पूरे कुछ टूट गए,
जा रहे हैं लड़ते हुए जिंदगी से,
भूख से लड़ते अब चूर हुए।
माना है रास्ता बड़ा लंबा,
और मंजिल भी बहुत दूर है,
पहुंचेंगे कैसे नहीं जानते हैं,
बस चलते रहने को मजबूर हैं।
आज की समसामयिक स्थिति में पलायन करते मजदूरों की व्यथा को व्यक्त करती मेरी यह कविता ……… भूख
