अल्फाज़ हमारे रोक नहीं पाओगे।
जिंदगी को मुझसे छिन नहीं पाओगे
मेरी कोशिश ही मेरा हक है
इसे बेअसर तुम कर नहीं पाओगे
डुबो देना बेशक दरिया में गर मुझको
इरादों के पतवार से
साहिल के पास आ जायेंगे
जज्बातों के जंग में
मेरी भूमिका एक योद्धा की हर दौर में रहेगी
खेत हो जाये जिस्म कौन सी नई परिभाषा होगी?
रो कर मौत की दुहाई मांगती वृद्ध की जिंदगी से
अच्छी है
छब्बीस साल की भगत सिंह की गौरवशाली जवानी
कितनी सुहानी होगी?
विश्वजीत गौतम
8789054584