सुरेश शहर में एक प्राईवेट स्कूल में पढ़ाता है और गाँव से आने जाने में दिक्कत न हो ,इसलिए शहर में ही किराए के एक कमरे में रहता है ।जब भी छुट्टी का मौका मिलता गाँव में आ जाता है और गर्मियों की छुट्टी में गाँव में ही समय निकलता है सुरेश का ।गर्मियों की छुट्टी में गाँव आया तो हर बार की तरह अपनी माँ के साथ गऊ माता की सेवा में समर्पित रहता और सेवा के किसी अवसर को हाथ से नहीं जाने देता।
सुरेश के यहाँ एक गाय ,एक बड़ा बछड़ा था और दो माह पहले गाय ने एक बछिया को जन्म दिया था ,तो कुल मिला कर तीन सदस्यों का गाय परिवार हो गया था । गाय से दूध भी मिलने लगा तो उसकी सेवा और ज्यादा होने लगी थी ।
गाँव में गर्मियों के समय में फसल से खेत खाली हो जाने पर पालतू गायों के अतिरिक्त आवारा जानवर भी बहुतायत में दिखाई पड़ते थे और घरों के आसपास घूमते रहते थे ।एक ऐसी ही गाय सुरेश के घर के पास पड़ोसी के बिना दरवाजे वाले कमरे में मक्खियों से बचने के लिए आया जाया करती थी और जैसे ही मौका लगे तो सुरेश की शाल और आंगन में बंदी बछिया के भूसा से अपने को तृप्त करती।सुरेश के घर वाले उससे बहुत परेशान होने लगे थे तो जिस कमरे में वो गाय बैठती थी ,वहाँ एक लकड़ी का गेट लगा दिया और उसके जाने के समय पर खोल देता था सुरेश।
सुरेश की इच्छा रहती थी कि उसको कुछ भूसा खिला दे ,लेकिन माँँ के मना करने पर क्योंकि माँँ नहीं चाहती थी कि गाय यहाँ लबक जाये और वृद्ध थी तो यहीं मर जाय।
सुरेश बाहर हैडपम्प पर पानी तो पिला देता था लेकिन चाह कर भी भूसा नहीं खिला पा रहा था।इस तरह से माह भर चलता रहा और एक दिन सुरेश के भाई शाम को कहते हुए घर आये कि वो गाय प्रधान के आम के पास साँप के काटने से मर गई। सब लोग उसकी बात कर रहे थे और कह रहे थे हम लोग सोचते थे कि वो यहींं मर कर हम सभी को परेशान करेगीं ,लेकिन कितने दूर जाकर मरी । सुरेश को ग्लानि हो रही थी कि मैंने ये क्या कर दिया ईश्वर ने मुझे सेवा का मौका दिया और मैंने जिस डर से उसे नहीं खिलाया उसने उस डर को मर कर दूर कर दिया ।
लेकिन सुरेश अपने अपराध के लिए केवल अफसोस के सिबा कुछ नहीं कर पा रहा था। पहले की गई गलती अब उसे अफसोस पर अफसोस करा रही थी।