संतो के रक्त से लाल धरा करने वाले वे कौन है कलतक तो थे मुखर सभी किन्तु आज क्यूं मौन हैं जो संविधान खतरे में कहकर देश मे आग लगाते हैं जो आतंकवादी की फांसी पे छुप छुप अश्रु बहाते हैं उनकी पथराई आंखों को क्या ये बर्बरता दिखी नही ? दो वृद्ध भिक्षुक के क्रंदन को क्या उन बहरे कानो ने सुना नही ? यूँ तो उन ढोंगी पाखंडी से ना मुझको कोई आशा है किन्तु मेरे चेतन मन मे इक छोटी सी जिज्ञासा है संतो की भूमि भारत मे हीं है लहूलुहान इक संत हुआ फिर भी ना संविधान खतरे में है ना लोकतंत्र का अंत हुआ।। ✍️ पंकज